. ( 'दामुल ' के पच्चीस वर्ष पूरे होने
पर कथाकार शैवाल के साक्षात्कार का अंश . जिसपर जहानाबादवासी गर्व कर सकते है)
" दरअसल मेरे साहित्यिक जीवन में मेरा कोई गुरु नहीं बल्कि
जहानाबाद जिला और वहां के अति पिछड़ा घोसी ब्लाॅक के लोगों को, परिवेश को ही मैं अपना गुरू मानता हूं. मैं सरकारी नौकरी में
सबसे ज्यादा दिन 1972-80 तक उसी इलाके में रहा. उन दिनों ‘रविवार’ पत्रिका
में गांव काॅलम लिखा करता था. मैंने इस इलाके से एक रिपोर्ट लिखी-जमींदारों द्वारा
जानवरों की चोरी करवाने की व्यवस्था यानि पनहा सिस्टम पर. देश भर से प्रतिक्रिया
मिली. बाद में मैंने उसी रिपोर्ट को एक्सटेंड कर ‘ कालसूत्र’ नाम से कहानी लिखी तो हिंदी जगत में उसे नोटिस लिया गया.
प्रकाश झा उन दिनों संघर्ष कर रहे थे. बिहारशरीफ में दंगा छिड़ा तो उस पर
डोक्यूमेंट्री बनाने के लिए प्रकाश झा यहां आये. उन्होंने ‘फेसेज आफ्टर द स्टाॅर्म’ नाम से
डोक्यूमेंट्री बनाने के क्रम में मुझसे संपर्क किया. तब मैंने बिहारशरीफ दंगे पर
कुछ कविताएं लिखी थीं. प्रकाश झा ने अपने डोक्यूमेंट्री में उन कविताओं के
इस्तेमाल की इजाजत मांगी.
हमारे संबंध बने.उसके बाद प्रकाश झा ने ‘कालसूत्र’ पर फिल्म बनाने की बात मुझसे कही और यह भी कहा कि इस पूरी कहानी को मैं आपके नजरिये से देखना चाहता हूं.
हमारे संबंध बने.उसके बाद प्रकाश झा ने ‘कालसूत्र’ पर फिल्म बनाने की बात मुझसे कही और यह भी कहा कि इस पूरी कहानी को मैं आपके नजरिये से देखना चाहता हूं.
(शैवाल )
मैंने स्क्रिप्ट पर काम शुरू किया. फिर जो फिल्म बन ीवह तो सबके सामने
आयी ही "
फिल्म को इस लिंक पर देख सकतेहैं
.https://www.youtube.com/watch?v=YNPi9FLtxPw
फिल्म को इस लिंक पर देख सकतेहैं
.https://www.youtube.com/watch?v=YNPi9FLtxPw
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