प्राचीन वाणावर सिद्धनाथ मान्दिर में सातवीं शताब्दी से भक्तों की निरंतरता बनी हुई है.
यह भारत के उन दुर्लभ मन्दिरों मे से एक है जहाँ हजार वर्षों से जागृत पूजा-पाठ हो रहा है. इसके दीवार की चौड़ाई 4 फुट से अधिक है.
छत पत्थर के स्तंभ पर टिका का है जो पत्थर के चौड़े सलेब्स से बना है यह नागर शैली के स्थापत्य कला की विशेषता है.
पर्वत के शिखर पर शिवलिंग है जो गर्भगृह के अंदर है. गर्भगृह के बाहरी दरवाजे पर दाएं-बाएं गणेश की मुर्ति है. मंडप के पश्चमी भाग में दो बड़ी मूर्तियां हैं जो मां पार्वती के रूप में जानी जाती है. इसी प्राचीन मन्दिर को बिना छेड़-छाड़ किये "बाबा सिद्धनाथ मंदिर सेवा समिति" ने इसका जिर्णोद्धार किया.
यह भारत के उन दुर्लभ मन्दिरों मे से एक है जहाँ हजार वर्षों से जागृत पूजा-पाठ हो रहा है. इसके दीवार की चौड़ाई 4 फुट से अधिक है.
छत पत्थर के स्तंभ पर टिका का है जो पत्थर के चौड़े सलेब्स से बना है यह नागर शैली के स्थापत्य कला की विशेषता है.
पर्वत के शिखर पर शिवलिंग है जो गर्भगृह के अंदर है. गर्भगृह के बाहरी दरवाजे पर दाएं-बाएं गणेश की मुर्ति है. मंडप के पश्चमी भाग में दो बड़ी मूर्तियां हैं जो मां पार्वती के रूप में जानी जाती है. इसी प्राचीन मन्दिर को बिना छेड़-छाड़ किये "बाबा सिद्धनाथ मंदिर सेवा समिति" ने इसका जिर्णोद्धार किया.
(तस्वीर: सौजन्य श्री रविशंकर एवं श्री सत्यप्रकाश )
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