42 वर्षीय इजरायली इतिहासकार युवाल नोआह् हरारी की पुस्तक "सेपियंस: ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ ह्यूमन काइंड " अंग्रेजी में वर्ष 2014 में प्रकाशित हुई. इस पुस्तक ने विश्व को मानव विकास का एक नया सिद्धांत दिया. बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग , बराक ओबामा और अन्य सिलिकॉन वैली के बड़े खिलाड़ी इसे पढ़ने की सलाह दे रहे है .हरारी ने ऐसी अद्भुत रचना का श्रेय विपश्यना पद्धति से किए गए ' मैडिटेशन ' को दिया है. जो किसी विषय पर ध्यान केंद्रित करने की अद्भुत शक्ति देता है. महत्वपूर्ण और गैर महत्वपूर्ण चीजों में अंतर समझने की अंतर्दृष्टि देती है. वरना सूचनाओं के बाढ़ में व्यक्ति का वजूद खत्म होता जा रहा है.
फेरारी गत 17 वर्षों से विपश्यना पद्धति से ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं. उनका कहना है कि प्रारंभ में 10 सेकंड से ज्यादा अपने श्वास पर ध्यान को केंद्रित नहीं कर पाते थे. पर अभ्यास से वर्तमान में प्रत्येक दिन 2 घंटे और वर्ष में 60 दिन विपश्यना का अभ्यास करते हैं उन्होंने स्वीकार किया है कि , यदि वे विपश्यना के संसर्ग में नहीं आते तो मध्यकालीन मिलिटेंसी पर आलेख लिख रहे होते या शोध कर रहे होते.
विपश्यना चीजों को वास्तविक स्वरूप में देखने और समझने की शक्ति देता है, जो जिस रूप में है.
पुस्तक में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि होमो सेपियंस अन्य सेपियंस से इसलिए अलग है क्योंकि वह अपने आसपास कहानियां गढ़ता है जिसका यथार्थ में कोई वजूद नहीं है. परंतु इन्हीं फिक्शन और कहानियों के चलते वह विश्व पर राज कर रहा है. ध्यान से देखें तो हमारे दिमाग में हमारे आसपास 99% फिक्शन ही है. धर्म, सत्ता, कानून, रुपया, मानवाधिकार, सभी इसी के अंग है. वे उन चीजों के अस्तित्व को नकारते हैं जिनका कोई बायोलॉजिकल वजूद नहीं है.
यह दर्शन की एक बिल्कुल नई परिपाटी है. इन्होंने दर्शन के एक नई स्कूल का द्वार खोला है. विपश्यना योग और ध्यान की एक प्राचीन पद्धति है जिसे सिद्धार्थ ने ढाई हजार वर्ष पूर्व बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे पुनर्जीवित कर बुद्धत्व को प्राप्त किया था. उसके ढाई हजार साल बाद सत्यनारायण गोयनका जी ने इसे पुनर्जीवित कर संपूर्ण विश्व में प्रसारित किया ध्यान-पद्धति हरारी तक पहुंची और " सेपियंस ", "होमो-डुएस" और "21 लेसन फ्रॉम 21स्ट सेंचुरी " जैसी रचनायें सामने आई.
Interesting
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