गतांक से आगे ..
यह एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास है. संभवतः नालंदा के किसी साहित्यकार द्वारा यह हिंदी में लिखा गया पहला उपन्यास है. उपन्यास के लोकार्पण के बाद मैंने गेरार्ड गुस्तावस डूकारेल उनके पूर्णिया से जुड़ाव और प्रोफेसर रामेश्वर प्रसाद के बारे में उपस्थित लोगों को बताया . 4:00 बजने को थे, आबो-हवा हमें लौटने की दस्तक दे रहा था. कार्यक्रम सभी को स्मृति चिन्ह देकर संपन्न किया गया .आयोजकों ने दोपहर के भोजन के लिए लिट्टी चोखा की व्यवस्था की थी जो पहाड़ पर ही बनाया गया था. इसमें राजगीर "ब्रह्मा कुंड" के गर्म जल का प्रयोग हुआ था इतनी नरम और स्वादिष्ट लिट्टी पहले मैंने कभी नहीं खाई थी .अद्भुत आयोजन अभूतपूर्व भोजन के बाद, न जाने की इच्छा के बावजूद हम वहां से लौट चलें.
(क्रमशः ..........)
कवि सम्मेलन के बाद इस कार्यक्रम में एक उपन्यास "डूकारेल की पूर्णिया" का लोकार्पण किया गया. यह उपन्यास प्रोफ़ेसर लक्ष्मीकांत द्वारा तीन वर्षों के गहन शोध के उपरांत लिखा गया है, गेरार्ड गुस्तावस डूकारेल और उनके भारतीय समाज से जुड़े प्रसंग इस उपन्यास का विषय है.
(क्रमशः ..........)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें