'मैटर ऑफ रैट्स' पटना पर लिखी एक वाहियात किताब है. लेखक अमिताभ कुमार है जो अमेरिका में रहते है. पुस्तक संस्मरणात्मक लहजे में लिखी गई है, परंतु कोई निरंतरता नहीं है. 'कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा'. लेखक का बचपन एवं किशोरावस्था पटना मे बीता है. यह बताना नहीं भूलते की वे अंग्रेजीदा स्कूल मे पढ़ें एक उच्च अधिकारी के पुत्र है . पाठक पुस्तक पढकर सहज अनुमान लगा सकते है की इनका जमीनी हकीकत से कभी वास्ता नहीं रहा . यदि कोई विदेशी इस पुस्तक को पढ़ ले तो उसे लगेगा कि पटना चूहों का शहर है.
भूमिका में वे लिखते हैं कि पटना का भोग मनुष्य नहीं चूहे करते हैं और दोनों एक साथ जीते हैं. कभी जलान संग्रहालय कभी अरुण प्रकाश की कहानी कभी बिंदेश्वर पाठक के सुलभ शौचालय में घुमाते हैं; कोई तारतम्यता नहीं है. ऐसा लगता है कि पटना संबंधित बेतरतीब नोट्स को पुस्तक का रूप दे दिया हो. अपने स्कूल की उत्कृष्टता बताते हैं, उसका नाम भी बताना नहीं भूलते. उनके बौद्धिक दिवालियापन का आलम यह है वे चूहों और उसके मारने की कला के संबंध में किसी गांव में जाकर नहीं पूछते बल्कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री से मिलते हैं, और इस संबंध में पूछ-ताछ करते हैं. कुल मिलाकर अमिताभ जी उस जमात में शामिल है जो पहली दुनिया में रहकर अपनी तीसरी दुनिया की गलत तस्वीर पेश कर सस्ती लोकप्रियता हासिल करना चाहते है. चीजों को वैसे ही परोसते है जैसा उनका आश्रयदाता चाहता है.
अमिताभ जी का मैटर ऑफ रैट्स औछी मनासिकता का रूप है ।
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