मुजफ्फरपुर चतुर्भुज स्थान के
इतिहास और इसके गुमनाम पात्रों से रु-ब-रु कराती 'कोठागोई '
इतिहास और साहित्य के बीच की कोई चीज है. इसमें लेखक ने कंही भी
पात्रों के काल्पनिक होने की बात नहीं कही है.
इतिहास में साहित्य और साहित्य में इतिहास रचने की
कोशिश में लेखक ने किसी विषय के साथ न्याय नहीं किया है. परन्तु यह भी सच है कि
किसी छोटे शहर के एक मोहल्ले को लेकर कथा श्रृंखला लिखने की परम्परा हिंदी साहित्य
में नहीं है, वह भी गुमनाम पात्रों पर शोध कर. गत बीसेक वर्षों के
साहित्य पर नजर डालें तो 'काशी का आस्सी' छोडकर किसी और पुस्तक ने लोगों का ध्यान नहीं खीचा, जो
शहर के मुहल्ले विशेष को केंद्र में रखकर लिखी गयी हो.
उपन्यास रूप में भारत के सन्दर्भ में लिखी गयी सबसे
महत्वपूर्ण पुस्तक 'फ्रीडम एट मिडनाइट ' (जिसका हिंदी
संस्करण राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ) है. यह विशुद्ध इतिहास की पुस्तक है,
जिसमें सन १९४७, १९४८ के इतिहास और उस कालखंड
के पात्रों को केंद्र में रखकर लिखी गयी है. इतिहास का ए बी सी डी नहीं जानने वाले
पाठक भी इसे उतने ही आनन्द के साथ पढ़ेगे जितना की इतिहास का एक शोधार्थी . भारतीय
इतिहास की इससे रोचक कोई पुस्तक मैंने आज तक नहीं पढ़ी.
एसी ही रम्यता की कुछ
अनुभूति 'कोठागोई' पढ़ते समय भी होती
है. यदि पात्र और घटनाओं को तिथियों और संदर्भ सूचि के साथ लिखा जाता तो इतिहास के
विद्यार्थी भी पढ़ते. भारत में क्षेत्रीय इतिहास लिखने की परम्परा दुर्भाग्य से
अबतक विकसित नहीं हुई है. बिहार में डा० कालिकिंकर दत्त साहब ने कई खंडों में 'बिहार का इतिहास' लिखकर यह परम्परा प्रारम्भ की थी.
इसके स्त्रोत सामग्री देखने से ज्ञात होगा कि 'कोठागोई'
जैसी पुस्तक भी एक जबरदस्त स्त्रोत सामग्री बन सकती थी. बशर्ते कि
इसमें स्थान पात्र और घटनाओं को प्रमाणिक ढंग से प्रस्तुत किया जाता.
डा० दत्त के जाने के बाद बिहार में क्षेत्रीय इतिहास
लेखन की परम्परा शिथिल पड़ गई. परन्तु जब भी यह परम्परा पुनर्जीवित हो विकसित होगी,
इस तरह की पुस्तकों का प्रयोग स्त्रोत सामग्री के रूप में होगा .
अत: एसी पुस्तकों की रचना में लेखक को हमेशा सचेत रहना चाहिये .
कोठागोई की कहानियाँ रसमय हैं. कथा-रस जो
कहानियों से विदा हो चुका है; की वापसी का एहसास दिलाता है,
वही कथा-रस जो पाठकों को अंत तक बांध कर रखता था . कोठागोई को बिना
अधोपांत पढ़े पाठक नहीं रह सकते. यही कथाकार की सफलता है.
(कोठागोई- लेखक प्रभात रंजन)
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