रविवार, 16 सितंबर 2018

पूर्णिया डायरी -7(Prof Dr Rameswar Prsad and rediscovery of purnea)

बात २००७  की है, पूर्णिया से मुझे एक व्यक्ति ने फ़ोन कर यह अनुरोध किया कि जिले की स्थापना दिवस की खोज में मै उनकी कुछ मदद करूँ . तब मैं सिवान में था.  मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वे जाकर प्रो० (डा०) रामेश्वर प्रसाद से मिलें और उनसे अनुरोध करें वे चाहे तो इस काम को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं  , पर मेरा संदर्भ न दें, क्योंकि वे एकांत पसंद व्यक्ति हैं, और किसी अन्य गंभीर विषय पर शोधरत हैं.वे नहीं चाहते की कोई व्यवधान पंहुचाये .
बहरहाल वो मिलने गए ; जिलाधिकारी ने भी इस आशय का अनुरोध उनसे किया . उसी दिन शाम में प्रोफेसर साहब ने फोन कर मुझे सारी बात  बताई. इस काम के प्रति अनिच्छा व्यक्त करते हुए मेरी राय पूछी. मैंने क्षमा मांगते हुए अनुरोध किया कि यह उनके गृह जिला का मामला है. यह भी बताया की मेरे ही सुझाव पर लोग आपसे मिले थे. मैं वर्ष २००३ से प्रो० रामेश्वर प्रसाद को जानता हूँँ. पूर्णिया छोड़ने के बाद भी लगातार सम्पर्क बना रहा, महिने में दो-तीन बार बात आवश्य हो जाती थी. इसके साथ ही काम प्रारंभ हो गया इसमें मैं उनका सहयोगी हो गया. इस विषय पर प्रत्येक दो-तीन दिन पर बात होने लगी.
    (14 फरवरी २०१८ को प्रो० रामेश्वर प्रसाद के आवास पर आकर सम्मानित करते जिलाधिकारी )                                                       बात शुरू हुई जिले में ब्रिटीश शासन के पहले सुपरवाइजर डूकारेल से .प्रोफेसर साहब काम में डूब गए परत दर परत खोज करने लगे . कई महिने की कठिन मेहनत के बाद वह तिथि भी उन्होंने  ढूंढ ली जिस दिन जिले के पहले अँग्रेज अफसर (सुपरवाइजर) के रूप मेें डूकारेल पूर्णिया आया था.तथ्य को साक्ष्य के साथ संदर्भित करते हुए एक विस्तृत आलेख तैयार किया .  मेरी सलाह पर इस लेख का एक सार (synopsis) सरकार को उन्होंने दिया .
                    तिथि निर्धारण के लिए बनी समिति के समक्ष  इसे रखा गया सबों का पक्ष सुनकर प्रो० साहब द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य और तथ्य के आधार पर 14 फरवरी को पूर्णिया का स्थापना दिवस तय हुआ . 2008 में पहली बार जिले का २३७ वां स्थापना दिवस मना. इस अवसर पर प्रकाशित स्मारिका में प्रो० साहब का यह शोधपरक लेख भी प्रकाशित हुआ .
             .पूर्णिया छोड़े बारह साल हो गए .पिछले कुछ वर्षों से मुझे पूर्णिया से प्रो० साहब के आलावा कोई फोने नहीं करता .२७ मार्च २०१८ को मै बस से पटना आ रहा था की पूर्णिया से एक अन्य व्यक्ति का फोने आया; मुझे उनके  रुखसत की खबर दे गया. मै इतना आहत हुआ कि चाह कर भी इतने दिनों तक उनके बारे में कुछ नहीं लिख सका. सूचना के साथ ही उनकी स्मृतियों का चलचित्र चल पड़ा. मै पूर्णिया में तीन साल रहा तीनो साल दुर्गा पूजा नवमी को वो मेरे घर अपनी फिएट कार सेे आते थे . बाद में पता चला की इस दिन बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद का विशेष महत्व है.एक बार उन्होंने मेरी पत्नी को बहू संबोधित करने की अनुमती मांगी थी , उनके ये शब्द सुनकर मेरे आँखों में आंसू आ गए थे. शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब उनकी याद न आती हो. 
          उन्होंने कई वृहत् शोध कार्य किये पर पूर्णिया जिला के स्थापना के विषय पर शोध कर संपूर्ण जिलावासियों के दिलों में स्थान बना लिया . पूर्णिया अब डुकारेल के साथ प्रो० रामेश्वर प्रसाद को भी विस्मृत नहीं कर पायेगा.
                                             

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