रेलवे स्टेशन था। इस धरोहर को जनता के लिए बचा कर रखना चाहिए था। एक ओर जहां पैलेस आन व्हील गायब कर दिया गया, वहीं इस स्टेशन को भी नष्ट करने में भगवान जगन्नाथ ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अगर यह धरोहरों बचा कर रखा जाता तो आज अन्य पैलेस आन व्हील की तरह तिरहुत का भी अपना शाही ट्रेन होता। वहीं मिथिला विश्वविद्यालय विश्व का इकलौता विश्वविद्यालय होता जिसके परिसर में रेलवे टर्मिनल होता। बनारस और जेएनयू में जब बस टर्मिनल देखने को मिला जो यह स्टेशन याद आ गया। अब बात बरौनी में रखे गये पैलेस आन व्हील की करू तो 1975 में उसे आग के हवाले कर दिया गया। कहा जाता है कि उसे जलाने से पहले उसके कीमती सामनों को लूटा गया। खैर तिरहुत रेलवे का इतिहास हम बताते रहेंगे...अभी आप इतना ही समझ लें तो काफी है कि तिरहुत में बिछी 70 फीसदी पटरी तिरहुत रेलवे के दौरान ही बिछायी गयी थी। आजाद भारत में महज 30 फीसदी का विस्तार हुआ है। आप अगर इन तसवीरों का प्रयोग करें तो श्री हेतुकर झा, प्रबंधन न्यासी, महाराजा कामेश्वर सिंह फाउंडेश को साभार देना मत भूलें, उनकी वजह से बहुत कुछ आज हम और आप देख और पढ रहे हैं।
(फेसबुक पर कुमुद सिंह की टिपण्णी)
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