पूर्णिया डायरी-12 से आगे....
पूर्णिया 1887 ईस्वी
डा० सांडर्स की लाश पालकी के अन्दर फोर्ब्स के बंगले की ड्योढ़ी में पड़ी थी . उस समय पूर्णिया की यूरोपिन कॉलोनी में रौनक हुआ करती थी . इसका विस्तार वर्तमान रंगभूमि मैदान के उतर पश्चिम था. यंहा कई लोगों के सरकारी बंगले थे जिसमे केवल ब्रिटेन ही नहीं बल्कि यूरोप के प्राय: सभी देश के मूल के लोग यथा फ्रांस आयरलैंड , जर्मनी, पुर्तगाल के लोग रहते थे. नेटिव इस ओर जाने से बचते थे. इसी कॉलोनी के पूरब सिविल लाइन बाज़ार था जो आज लाइन बाज़ार के रूप में जाना जाता है. फ़ोर्ब्स ने तत्काल तीन हरकारा (संदेशवाहक) जो तेज धावक होते थे, को बुलवाया ; इन्हे जिले के मजिस्ट्रेट , कमिश्नर , और कमांडिंग ऑफिसर के पास डा ० सांडर्स के मृत्यु की सूचना देने हेतु भेजा. एक अश्वारोही संदेशवाहक को मि० मुर्री के पास यह कहवाकर भेजा कि वे जितनी जल्दी हो अपने घोड़े पर सवार हो आयें. मि ० मुर्री नील की खेती कराने वाले बड़े जमींदार थे, जिन्हें स्थानीय लोग निलहा फिरंगी कहते थे.
मि० मुर्री दो घंटे में पहुँच गये. उनकी मदद से डा० सांडर्स के मृत शरीर को पालकी के अन्दर से निकाल कर कमरे में रखा गया, जंहा अब दफनाने तक इंतजार करना था. कमिश्नर शाम में पंहुचे. कैंटोनमेंट के छोटे कब्रिस्तान में लाश को दफ़नाने की तैयारी की जाने लगी जो पास में ही था. स्थानीय लोग जिसे अंग्रेज 'नेटिव' कह सम्बोधित करते थे ; में यह खबर जंगल के आग की तरह फ़ैल गयी कि हैजा महामारी का रूप ले चुका है, जिससे जिले के सबसे बड़े अंग्रेज डाक्टर की मौत हो गई है. भय लोगों में इस तरह व्याप्त था की मृत डॉक्टर की कब्र खोदने के लिए कोई तैयार न हुआ. सूचना पाकर अन्य अंग्रेज ऑफिसर असिस्टेंट पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट एवं फारेस्ट कांसेर्वेटर भी पंहुंच गए. शाम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने के बाद भी जब ग्यारह बजे रात तक कोई नेटिव कब्र खोदने को तैयार नहीं हुआ तब फोर्ब्स , मि० मुर्री असिस्टेंट पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट एवं फारेस्ट कांसेर्वेटर ने स्वयं कब्र खोदना प्रारंभ किया. इन्हे छह घंटे कब्र खोदने में लगे . सुबह पांच बजे डा० सांडर्स के मृत शरीर को दफ़न किया गया. रातभर कब्रिस्तान में बिताने के बाद सब वापस लौटे. यह पूर्णिया के इतिहास की एक भयानक रात थी.
क्रमशः .....
पूर्णिया 1887 ईस्वी
डा० सांडर्स की लाश पालकी के अन्दर फोर्ब्स के बंगले की ड्योढ़ी में पड़ी थी . उस समय पूर्णिया की यूरोपिन कॉलोनी में रौनक हुआ करती थी . इसका विस्तार वर्तमान रंगभूमि मैदान के उतर पश्चिम था. यंहा कई लोगों के सरकारी बंगले थे जिसमे केवल ब्रिटेन ही नहीं बल्कि यूरोप के प्राय: सभी देश के मूल के लोग यथा फ्रांस आयरलैंड , जर्मनी, पुर्तगाल के लोग रहते थे. नेटिव इस ओर जाने से बचते थे. इसी कॉलोनी के पूरब सिविल लाइन बाज़ार था जो आज लाइन बाज़ार के रूप में जाना जाता है. फ़ोर्ब्स ने तत्काल तीन हरकारा (संदेशवाहक) जो तेज धावक होते थे, को बुलवाया ; इन्हे जिले के मजिस्ट्रेट , कमिश्नर , और कमांडिंग ऑफिसर के पास डा ० सांडर्स के मृत्यु की सूचना देने हेतु भेजा. एक अश्वारोही संदेशवाहक को मि० मुर्री के पास यह कहवाकर भेजा कि वे जितनी जल्दी हो अपने घोड़े पर सवार हो आयें. मि ० मुर्री नील की खेती कराने वाले बड़े जमींदार थे, जिन्हें स्थानीय लोग निलहा फिरंगी कहते थे.
मि० मुर्री दो घंटे में पहुँच गये. उनकी मदद से डा० सांडर्स के मृत शरीर को पालकी के अन्दर से निकाल कर कमरे में रखा गया, जंहा अब दफनाने तक इंतजार करना था. कमिश्नर शाम में पंहुचे. कैंटोनमेंट के छोटे कब्रिस्तान में लाश को दफ़नाने की तैयारी की जाने लगी जो पास में ही था. स्थानीय लोग जिसे अंग्रेज 'नेटिव' कह सम्बोधित करते थे ; में यह खबर जंगल के आग की तरह फ़ैल गयी कि हैजा महामारी का रूप ले चुका है, जिससे जिले के सबसे बड़े अंग्रेज डाक्टर की मौत हो गई है. भय लोगों में इस तरह व्याप्त था की मृत डॉक्टर की कब्र खोदने के लिए कोई तैयार न हुआ. सूचना पाकर अन्य अंग्रेज ऑफिसर असिस्टेंट पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट एवं फारेस्ट कांसेर्वेटर भी पंहुंच गए. शाम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाने के बाद भी जब ग्यारह बजे रात तक कोई नेटिव कब्र खोदने को तैयार नहीं हुआ तब फोर्ब्स , मि० मुर्री असिस्टेंट पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट एवं फारेस्ट कांसेर्वेटर ने स्वयं कब्र खोदना प्रारंभ किया. इन्हे छह घंटे कब्र खोदने में लगे . सुबह पांच बजे डा० सांडर्स के मृत शरीर को दफ़न किया गया. रातभर कब्रिस्तान में बिताने के बाद सब वापस लौटे. यह पूर्णिया के इतिहास की एक भयानक रात थी.
क्रमशः .....
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