अन्दर शैल-मूर्तियों की एक लम्बी श्रृंखला थी. मंदिर विकास समिति के सत्यप्रकाश जी से मिलकर वहां की साफ-सफाई करवायी .यह एक नई चीज थी जिसका उद्भेदन अबतक न हो सका था.
लौटकर मैंने इन शैल-मूर्तियों का विवरण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण / बिहार पुरातत्व की रिपोर्ट , जिला गजेटियर , डी० आर० पाटिल की पुस्तक Antiquarian remains in bihar में ढ़ूढ़ा पर कहीं नहीं मिला.
गौ-घाट/हथिया-बोर होकर जानेवाला मार्ग मंदिर तक जाने का मार्ग प्राचीनतम है .इस मार्ग से होकर जाने पर हमें कुछ स्थानों पर प्राचीन शैल मूर्तियाँ मिलती हैं .
इस प्रकार के शैल उत्कीर्ण मूर्तियाँ बिहार में केवल कौआडोल और सुलतानगंज (अजगैबीनाथ मंदिर) में देखने को मिलता हैं.
इस पोस्ट से पहले इन शैल उत्कीर्ण मूर्तियाँ का कहींं कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ है, न ही पूर्व में किसी शोधकर्ता ने इसके पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की है.
Atyant rochak
जवाब देंहटाएं