खुदा बक्श खां साहब के विषय में सिवान डायरी - २ में लिखते हुए मेरी इच्छा हुए की क्यों न सिवान जाकर उनके गांव उखई घूम आया जाये. इस बात के लिए मै अपने आप को कोस भी रहा था की सिवान रहते (वर्ष २००७से २००९ के बीच ) मै उखई नहीं जा सका . मैंने तत्क्षण वंहा अपने मित्र कुशेश्वरनाथ तिवारी से बात की , अनुरोध किया कि उखई जांयें और संभव हो तो उनके पैतृक घर को ढूूँँढेे. वंहा लोगों से मिलें . वे अत्यंत उत्साहित हुए , उखई गये .
खुदा बक्श साहब के पैतृक घर , वंहा की गलियों , वंहा के लोग, लोगों द्वारा सहेजी गयी स्मिर्तियो को साझा किया. उन्होंने खुदा बक्श साहब के पौत्र मो० सरफुद्दीन खां का पता भी दिया जो कलकता में रहते हैं .
सरफुदीन साहब से मेरी लम्बी बात हुई. उन्होंने भविष्य की योजना बताते हुए कहा की उखैई में वे १०० बीड का बड़ा अस्पताल बनवाना चाहते हैं. पटना आने पर मिलने का भी वचन दिया, वे खुदा बक्श खां ओरिएण्टल पुब्लिक लाइब्रेरी के गवर्निंग बॉडी के सदस्य भी हैं.
खुदा बक्श साहब के पैतृक घर , वंहा की गलियों , वंहा के लोग, लोगों द्वारा सहेजी गयी स्मिर्तियो को साझा किया. उन्होंने खुदा बक्श साहब के पौत्र मो० सरफुद्दीन खां का पता भी दिया जो कलकता में रहते हैं .
सरफुदीन साहब से मेरी लम्बी बात हुई. उन्होंने भविष्य की योजना बताते हुए कहा की उखैई में वे १०० बीड का बड़ा अस्पताल बनवाना चाहते हैं. पटना आने पर मिलने का भी वचन दिया, वे खुदा बक्श खां ओरिएण्टल पुब्लिक लाइब्रेरी के गवर्निंग बॉडी के सदस्य भी हैं.
बहुत अच्छा
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