शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

वानावर डायरी -१(बराबर पहाड़ के मनौती शिवलिंग ; votive shivlinga of vanawar/ barabar; jahanabad)

 पटना से ८० किलोमीटर की दूरी पर वानावर ( बराबर ) की पहाड़ियां स्थित हैं. पुरानी पुस्तकों के साथ कई वर्तमान अभिलेखों में इस स्थान को गया जिला में स्थित बतलाया जाता है. यह जहानाबाद जिला के मखदुमपुर प्रखंड में हैं. जो vanawar caves के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह वन क्षेत्र है . दो-तीन किलोमीटर की दूरी में कोई बस्ती नहीं है.  इस  पहाड़ के पत्थरों पर उकेरी गई मनौती शिवलिंग ( votive shivlinga) अदभुत ऐतिहासिक विरासत है जिसका अध्ययन और संरक्षण किया जाना है.

सुर्यांक गिरी पहाड़ के शिखर पर बाबा सिद्धेश्वर नाथ का मंदिर है . वर्तमान में इसपर जाने हेतु तीन प्रमुख मार्ग हैं. पहला वावन सीढ़ी की ओर से, जिससे नालंदा जिला से आनेवाले अधिकतर कांवरिया सावन में जल लेकर चढते हैं. दूसरा पताल गंगा की ओर से , इस रास्ते पर पक्की सीढियाँ बनी हैं . आगे जाने पर दो सीढियों की ऊँचाई १ फीट से अधिक हो जाती है जिसके कारण यह एक कठिन चढाई है. तीसरा रास्ता गौ-घाट/हथिया-बोर होकर है. यह अन्य दो मार्गो से अपेक्षाकृत आसान है. यही मंदिर तक जाने का प्राचीन मार्ग था.इस मार्ग से होकर जाने पर हमें कई प्राचीन मनौती शिवलिंग मिलती है, जो प्रमाणित करती है कि यही प्राचीनतम मार्ग है. इस मार्ग से चढना आज भी आसन है.


इस प्रकार के मनौती शिवलिंग बिहार में अन्यत्र मिलने की कोई सूचना नहीं है . परन्तु वानावर में काफी संख्या में है. सिद्धेश्वर मंदिर के आसपास तो इनकी संख्या सौ से अधिक है.

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मंदिर के आसपास सैकड़ो की संख्या में शैलों पर शिवलिंग उत्कीर्ण किये गये हैं.


इस पोस्ट से पहले इन मनौती शिवलिंग का कंही कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ है, न ही पूर्व में किसी शोधकर्ता ने इसके पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की है.


 ये मनौती शिवलिंग हैं. जब किसी भक्त की भगवान शिव मनोकामना पूर्ण कर देते थे तो भक्त श्रधा स्वरुप मंदिर के आसपास शैलों पर ऐसे शिवलिंग का निर्माण करते थे  ,





बौद्ध धर्म में भी मनौती स्तूप बनाने की परम्परा है . यह कहना मुश्किल है कि मनौती निर्माण की परम्परा सनातन धर्म से बौद्ध धर्म में गयी अथवा बौद्ध से सनातन में.

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