उखई सिवान से 6 किलोमीटर की दूरी पर पंचरुखी प्रखंड का एक गांव है. इसी गांव में 18वीं शताब्दी के अंत में मौलवी मोहम्मद बक्श का जन्म एक संपन्न मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पूर्वज मुगल बादशाह आलमगीर के दरबार में अभिलेख लेखकऔर अभिलेखपाल थे. परंतु पलासी एवं बक्सर की लड़ाई के उपरांत ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ मुग़ल बादशाह से संधि हुई . इस संधि ने कुछ ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी की मुगल बादशाह अपने अमला को वेतन देने की स्थिति में नहीं रह गये. बल्कि खुद ही पेंशनभोगी बन गए थे.
मौलवी मोहम्मद बक्श परिवारिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए अच्छी तालीम हासिल की और मुस्लिम लॉ के विशेषज्ञ हुए. सत्ता के समीपस्थ केंद्र पटना में आकर बस गए जंहा उनके लिए पर्याप्त अवसर और संभावनाएं थी . चूँकि उनके पूर्वज अभिलेखपल थे इस कारण उन्हें दुर्लभ पुस्तकें और पांडुलिपियों के संकलण का जबरदस्त शौक था. उनके इस शौक ने दुनियां को एक नया विरासत दिया ,जिसे आप खुदा बख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के नाम से जानते हैं
. लाइब्ररी के बारे में विशेष विवरण इस लिंक http://kblibrary.bih.nic.in/default.htmपर आपको मिल जाएगा . .लाइब्रेरी के अधिकारीक वेबसाइट पर हमें मौलवी मोहम्मद बक्श के बारे में बहुत कुछ नहीं बताता. यह अभी भी उखई को छपरा जिला में ही बताता है. जबकि वर्तमान में उखई सिवान जिले में है. खुदा बख्श खान का जन्म 2 अगस्त 1842 को सिवान के उखई में ही हुआ था . पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए अच्छी शिक्षा ग्रहण की, पटना में पेशकार के रूप में शुरुआत कर सन 1895 में मैं हैदराबाद निजामत अदालत के चीफ जस्टिस बने
. सन 1876 मौलवी मोहम्मद बक्श जब मृत्यु शय्या पर लेटे थे तो उन्होंने अपना दुर्लभ संग्रह योग्य पुत्र को सौंपते हुए एक पुस्तकालय खोलने की इच्छा व्यक्त की . खुदा बक्श खां ने पिता की इच्छा को जुनून में बदल दिया. सन 1891में पुस्तकालय 4000 पांडुलिपि और हजारों पुस्तकों के साथ आम लोगों के लिए खोल दी गयी. प इसके बाद भी खुदा बक्श पांडुलिपियों और दुर्लभ ऐतिहासिक वस्तुओं के संकलन में अपनी जमा पूंजी लगाते रहे. इस जुनून के कारण उन्होंने कर्ज लिया . इस कर्ज को चुकाने के लिए बंगाल सरकारने उन्हें 8000 रुपए का अनुदान दिया. उनकी मृत्यु 3 अगस्त 1908 को हुई . मृत्यु से पूर्व १९०५ में एक रीडिंग रूम का निर्माण कराया. सरकार द्वारा दिए गये अनुदान के एवज में इसका नाम कर्जन रीडिंग रूम रखा गया.
पुस्तकालय का अधिकारिक वेबसाइट भी इसके बारे में मौन है .खुदा बक्श सन 1915 में गठित बिहार एवं उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी के इतिहास की समिति के सदस्य भी रहे है. इस वर्ष खुदा बक्श साहब के जन्मदिन (२ अगस्त) के अवसर पर
यहाँ लगाई गयी प्रदर्शनी में उन दुर्लभ पांडुलिपियों को देखने का अवसर मुझे भी मिला. पटना से जुड़े तीन अलग-अलग महानुभावों ने अपने ऐसे शौक की वजह से विश्व को विरासत दिया है. दो के बारे में फिर कभी.
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