रविवार, 16 अगस्त 2015

सिवान डायरी-1 (Siwan dayri-1)

सिवान मे एक प्रखंड है पंचरुखी जंहाँ एक गाँव है  पपौर . आज से पच्चीस-तीस वर्ष पूर्व यहाँ अमेरिका से इतिहास के छात्रों का एक अध्ययन दल आया था. ये अपने अध्ययन-यात्रा में भगवान बुद्ध के निर्वाण से जुड़े स्थलों कि तलाश कर रहे थे . इस दल को पपौर में कुशेश्वर नाथ तिवारी से भेंट हुई, जो उन दिनों एक विद्यार्थी थे . कुशेश्वर जी को जानकर आश्चर्य हुआ कि भगवान बुद्ध ने आपना अंतिम भोजन उन्ही के गाँव में चुंद स्वर्णकार के घर खाया था, जिसके बाद उनका परिनिर्वाण हुआ .
   अपने गाँव के इतिहास को जानने  के लिए उन्होंने बुद्ध से जुडी कई पुस्तकों का अध्ययन किया . इन पुस्तकों मे के० पी० जायसवाल शोध संस्थान के के पूर्व निदेशक डा० जगदीश्वर पाण्डेय की पुस्तक ‘’Footprints of budha’’ भी थी . इस पुस्तक में प्रमाणित करने का प्रयास किया गया है कि पपौर ग्राम में भोजन ग्रहण करने के  सिवान मे दाहा नदी के तट पर ही भगवान बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ था. कुशीनगर के मल्ल राजाओं को इसकी सूचना मिली तो वे सोने के शवयान मे विशेष औषधिय द्रव से उपचारित कर उनके शव को कुशीनगर ले गये . कहा जाता है कि इसी करण इस स्थान का नाम सिवान पड़ा .
       इसके बाद कुशेश्वरनाथ तिवारी एक योधा कि तरह अपने गाँव के एतिहासिक पहचान को स्थापित करने के लिए इतिहास से जुड़े सभी शोध संस्थान , बिहार सरकार के पुरातत्व निदेशालय ,  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कार्यालयों का चक्कर लगाने लगे . कई बार जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कार्यालय दिल्ली जाने के क्रम में रेल में आरक्षित टिकट नहीं मिला तो साधरण डब्बे मे खड़ा रहकर  सिवान से दिल्ली तक की यात्रा की. अंततः उनका बीस वर्षों का परिश्रम सफल रहा . ३१ जुलाई १५’ से पपौर में  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देख-रेख मे खुदाई का कार्य चल रहा है. एन० बी० पी० डव्लू० एवं भगवान बुद्ध के काल के कई  पुरातात्विक साक्ष्य मिलने की सूचना है.

         पुरातात्विक विरासत के संरक्षण के लिए हमें प्रत्येक पंचयात और कस्बे में हमें एसे योध्या की जरूरत है.