मंगलवार, 2 मई 2017

कटिहार डायरी (ktihar diary)

(महेंद्र कुमार विकल जी के फेसबुक दीवाल से )


चिरंतन विद्रोही : नक्षत्र मालाकार
जन्म:- 9अक्टूबर 1905; मृत्यु :- 27 सितम्बर 1987
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पूर्णिया -कटिहार क्षेत्र के आर्थिक-सामाजिक न्याय के क्रांतिकारी शख्सियत "नक्षत्र मालाकार" को सवर्णो की वर्चस्व वाली अकादमिक विरादरी ने कभी महानायक का दर्जा नही दिया। दुख की बात तो यह है कि जिन दलितों-पिछडो के लिए वे जीवन भर संघर्ष करते रहे, उन्होंने ने भी अपने इस महानायक को भुला दिया !
नक्षत्र मालाकार अंग्रेजी शासन में 9 बार जेल गये। पुलिस और सामंती जुल्म के खिलाफ दलितों, पिछडो, गरीबों, किसानों, मज़दूरों के हक़ में जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। वे दोषी पाये गये जुल्मी जमींदारों के नाक-कान काट लिया करते थे। इनके पिता का नाम लबबू माली था, जिनकी पहली पत्नी सरस्वती देवी से दो पुत्र- जगदेव माली और द्वारिका माली थे।
पहली पत्नी के निधन के बाद दूसरी पत्नी लक्ष्मी देवी से दो पुत्र- बौद्ध नारायण और नक्षत्र माली हुए। इनसे तीन पुत्री - तेतरी, सत्यभामा और विद्योत्मा भी हुई।
ये पैतृक गांव 8 समेली से विस्थापित होकर कटिहार के बरारी में बस गये और परिवार पुश्तैनी धंधा से जीवन यापन करने लगा। बड़े भाई की प्रेरणा से नक्षत्र ने महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में भाग लिया और 42 साथियों के साथ 6 माह की सज़ा पाई। इसके बाद विदेशी कपड़ों के बहिष्कार में भी इन्हें सज़ाबार किया गया और 6 माह गुलजारबाग जेलमे रहे। जेल से लौटकर टिकापट्टी कांग्रेस आश्रम में चरखा और तांत की ट्रेनिंग ली और कांग्रेस से जुड़ गये। पूर्णिया कटिहार क्षेत्र में कांग्रेस संगठन पर उन्हीं सामन्तों-जमींदारों का कब्जा था, जो गरीबों के शोषक और उत्पीड़क थे।
एक गरीब बुढ़िया की बकरी फसल में चले जाने कांगेस नेता बैद्यनाथ चौधरी के छोटे भाई अम्बिका चौधरी ने नक्षत्र के रोकने पर भी बुढ़िया से चौगुना हर्जाना बसूला, इस घटना के कारण कांग्रेस से मोहभंग होने पर कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और सोनपुर में पार्टी के "समर स्कूल ऑफ़ पालिटिक्स" में शामिल हुए, जिसके प्रिंसिपल जय प्रकाश नारायण थे। यहाँ कार्यकर्ताओ और नेताओं का खाना अलग-अलग बनता देख समाजवाद से भी इनका मोह भंग हो गया।
पार्टी के निर्देश पर इन्होंने कटिहार मील मजदूरो को संगठित कर उनके हक़ की लड़ाई को नेतृत्व दिया और फिर जेल गये।
समेली और टीकापट्टी में उनके हथियार बनाने के कारखाने थे। वे नेपाल-क्रांति और बंगाल के स्वदेशी आंदोलन से भी जुड़े थे। नेपाल में लोहिया जेपी के साथ विराट नगर के पास दीदारगंज में क्रांतिकारियों का आज़ाद दस्ता बना और सशस्त्र क्रांति का निर्णय लिया गया और ये लोग गुरिल्ला अंदाज़ में कार्रवाई करने लगे। 1942 की क्रांति में इनलोगों ने कटिहार के रुपौली थाने को उड़ा दिया, जिसमे 6 लॉगिन की जाने गई। इसमे नक्षत्र सहित 36 लोग आरोपी बनाये गये। परंतु नक्षत्र जी के दबाव में लोग गवाही देने से मुकर गये और जो नहीं माने वो दिवंगत कर दिये गये।फलतः ये लोग बड़ी हो गये।
1947 के भयावह अकाल में जमाखोरों-जमींदारों के अनाज लूटकर भूख मरते गरीबो में बाँट दिया। पर कोई इनका कुछ बिगाड़ न सका। इसके बाद आज़ादी तो मिली,पर सत्ता पर सामन्त और जमींदार ही हाबी रहै, जिनके विरुद्ध नक्षत्र जी लड़ते रहे थे। इस दौरान इनके माँ, पिता, भाई और बच्चे इलाज के अभाव में मर गये पर कभी झुके नहीं।
30 अगस्त 2952 को इन्हें कदवा के चांदपुर गांव से फ़र्ज़ी मुकमे में गिरफ्तार किया गया। आजीवन कारावास की सज़ा मिली। 24 साल बाद रिहा होकर दिसम्बर 1966 में बाहर आये। कम्युनिस्ट पार्टी ने इनका जोरदार स्वागत किया। इसके बाद 1979 और 1984 में पार्टी टिकट पर बिधान सभा चुनाव लड़े पर दोनो बार हार गये।
इन्होंने पूर्णिया में सिपाही और ततमा बसाया। सुपौल के भोलू बाबू जमींदार से दान में मिली 14 बीघा जमीन दलित पासवानों में बाँट दिया। इन्होंने ने जमींदारों से 90 एकड़ जमीन मांगकर "भगवती मंदिर महाविद्यालय की स्थापना की। जीवन के अंतिम दिनों में पूर्णिया नगर से 7 किलोमीटर दक्षिण हरदा गांव के निकट हज़ारों एकड़ में फैले भुवना झील के पानी को जनसहयोग से नहर बनाकर कारी कोशी में गिरा दिया और इससे निकली ज़मीन को भूमिहीनों में बाँट दिया। प्रशासन ने लाख रोकने की कोशिश की पर एकन चली।
27 सितम्बर 1987 को गरीबो के इस बहादुर सिपहसालार का इलाज के अभाव में किडनी फेल हो जाने के कारण निधन हुआ। परन्तु खेद की बात है कि स्वर्ण वर्चस्व वाली जातिवादी अकादमी ने इनके संघर्षपूर्ण जीवन को कभी भी महिमा मंडित नही किया !
जागरूकता के अभाव में दलितों-पिछड़ों ने भी अपने इस महानायक को कभी आदर से याद करने की कोशिश नही किया। मैं पटना से प्रकाशित सबाल्टर्न हिन्दी पत्रिका, अप्रैल 2017 में नक्षत्र मालाकार के जीवन वृत्त पर प्रकाशित अरुण नारायण के लेख के लिए लेखक और पत्रिका के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
~~~ कवि महेन्द्र कुमार 'विकल'