बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

एक लखपति की डायरी

28.10.2019 (पटना)- आज मेरे मोबाईल फोन पर एक मैसेज आया की मेरे बैंक खाते मे एक लाख दो हजार चार सौ नौ रुपये प्राप्त हुये है. और अनायास मैं लखपति बन गया. बचपन मे स्टेशन और बस-स्टैंड पर रंगीन लुभावने लाटरी को टिकट बेचते देखा था, जो सामान्य जन के लिये लखपती बनने का सामान्य रास्ता था. 
               यह मेरे वेतन के रुपये थे. आज से 19 साल पहले जब मैने नौकरी शुरु की थी , तो सोचा भी नही था की कभी मेरा वेतन एक लाख हो जायेगा. मै ए0 टी0 आई0 (SKIPA )की स्मृतियों मे खो गया.
      3 अक्टूबर 2000 को मैने पटना मे योगदान किया तब तक अलग झारखंड राज्य के गठन का निर्णय हो चुका था. 15 नबंवर 2000 को नये राज्य का विधिवत् गठन होना था, जिसकी राजधानी राँची होगी. जिस दिन मैने योगदान दिया वह सरकरी सेवक को अपने इच्छित राज्य में नौकरी करने के विकल्प को चुनने की अंतीम तीथी थी, मेरे पास सोचने का ज्यादा समय नही था. मेरा बचपन झारखंड मे बीता था, मैने मैट्रिक की परीक्षा भी वहीं से पास की थी, सो आव देखा न ताव झट झारखंड विकल्प दे मारा.
        14 नबंवर को हार्डिंग पार्क से ''कृष्णा-रथ'' पर सवार हो , राँची के लिये निकल पड़ा. मन मे घर छुटने का दुखः था, पर नये नौकरी का उत्साह उस दुःख का न्युनिकरण कर रहा था . रथ का सारथी बार-बार एक ही गाना बजा रहा था जिसे सुनते हुये मै सो गया.
राबड़ी मलाई खईल,
कईल तन बुलंद,
अब खईह शकरकंद,
अलगे भईल झारखंड.

सबेरे मोराबादी उतरा. एच0 ई0 सी0 परिसर के एक भवन मे सचिवालय चल रहा था, वहाँ जाकर योगदान किया और खाली हाथ वापस लौटा. जनवरी 2001 मे  ए0 टी0 आई0 से बुलावा आया. फिर शुरु हुआ नौकरी का सबसे खूबसूरत और बिंदास दौर जो लौटकर फिर न आया. पर अबतक  एक कमी थी, तीन माह से ज्यादा हो गया था, बिहार झारखंड के चक्कर मे वेतन का दर्शन नही हुआ था . कक्षा मे बोर्ड पर किसी ने अपनी पीड़ा लिख दी.
वे-तन
तन-खा
उसके नीचे किसी ने जोड़ दिया 
घर जा
पैसा ला
फिर खा
अब तक घर से ही पैसा लेकर खा रहे थे. तभी पता चला की ए0 टी0 आई0 की बाउन्ड्री से सटे बंगले मे झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री जी का आवास है. कुछ उत्साही युवा मित्र वहाँ तक पहुँच अपनी समस्या रखने मे सफल हो गये. कुछ ही दिनों बाद तीन माह का वेतन एक साथ मिला अठ्ठाईस हजार तीन सौ इकतिस  रुपये. उन दिनो वेतन नगद मिलता था . सौ-सौ की तीन गड्डियाँ हाथ मे थी , सहसा विश्वास ही नही हुआ की ये सारे रुपये मेरे है. इसमे से मैने तीन हजार निकाला और शेष अगली इतवार "कृष्णा रथ" पर सवार हो पटना माँ के चरणों मे अर्पित कर आया. उस तीन हजार रुपये से मैने ए0 टी0 आई0 मे बचे ढाई महिने काटे और मजे से राँची भी घुमा.
                  एक वो दिन और एक आज का दिन. मोबाईल का स्क्रिन गिरकर दो माह पहले टूट गया है. एक दिन बाकरगंज से बनवा कर लौट रहा था, तभी शुक्ला जी का फोन आया पूछे कहाँ थे , बताया तो ठठाकर हँसे और ताकिद की कि किसी और को ये वाकया न बताऊँ कि मोबाइल फोन बनवाने गया था. बजट में खिंचतान कर नया मोबाईल खरीदने की फिराक मे हूँ, पर लखपति बन जाने के बाद भी अबतक सफलता नही मिली है.  
                 

सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

किताब-ए-बिहार(बिहार से जुड़ी किताबों की महफिल)-2

 शशिकांत मिश्र का उपन्यास "नान रेजिडेंट बिहारी " वर्ष 2015 में प्रकाशित हुआ. कथानक कटिहार से प्रारम्भ होकर दिल्ली मुखर्जी नगर तक फैला है.
साथ में एक प्रेम कहानी  भी चलती है कटिहार और दिल्ली के बीच. संभवतः बिहार, मुखर्जी नगर, और यू0 पी0 एस0 सी0 की तैयारी को केन्द्र मे रखकर लिखा गया हिन्दी का पहला उपन्यास है , जो वर्ष 2015 मे ही प्रकाशित उपन्यास निलोत्पल के "डार्क हार्स" मे विस्तार पाता है. कथाक्रम मे बिखराव दिखता है, जो न चाहते हुए भी बताता है की यह लेखक का पहला उपन्यास है. शुरुआत ही एक बच्चे के जन्म के  प्रसंग से होता है. यह नाटकियता का चरम और लेखक के अपरिपक्वता का परिचायक है. यदि उपन्यास के इन प्रारंभिक दो पन्नों को हटा दिया जाता तो यह और दमदार होता. उपन्यास का काल विस्तार  यू0 पी0 एस0 सी0 के चार अटैम्प्ट तक फैला है.  पुरे उपन्यास पर प्रेमकथा हावी है, तमाम संघर्ष को नेपथ्य मे धकेलते हुये.

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

वल्लमीचक डायरी

24.09.19 - वल्लमीचक (अनिसाबाद)  पटना की सीमा पर बसा एक गाँव था, जो अब पटना का एक मोहल्ला है जिसके अंदर कई उप-मोहल्ले हैं. यहां रहते है श्री घमंडी राम.आज घमंडी राम जी से उनके आवास पर मिला . कुछ लिख रहे थे. ये मगही-हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकार है. इन्होंने अब तक कुल 26 पुस्तकों की रचना की है और 13-14 प्रकाशनाधीन हैं, कई पुस्तकों और पत्रिकाओं का भी संपादन किया है.



साहित्य की प्रायः सभी विद्याओं यथा कहानी, कविता, शब्दचित्र, एकांकी, लोकगीत, गीत, अभियानगीत, गजल, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, प्रबंधकाव्य, महाकाव्य, इत्यादि में इनकी रचनायें है सिवाय उपन्यास के. कछ ख्याति प्राप्त पुस्तकें है-


माटी के मरम(मगही शब्दचित्र) 
       धरती के गीत (मगही लोकगीत संग्रह)
 स्वर के पँख (हिन्दी कविता संग्रह)
          ढाई आखर प्रेम का (हिन्दी निबंध संग्रह)
एकलव्य (मगही महाकाव्य)
          जिन्दगी अतुकान्त कविता (मगही संस्मरण)

नाम के उलट घमंडी बाबू की सादगी और शालिनता उनके प्रति मन मे आदर का भाव लाता है. पटना के बेनीबिगहा (बिक्रम) मे जन्मे श्री राम बिहार शिक्षा सेवा से वर्ष 2006 मे अवकाशप्राप्त हुए. इन्होने बताया कि वर्ग आठ से कवितायें लिख रहे है. इनकी  लिखी किताबें विभिन्न विश्वविद्यालयों के मगही भाषा एवं साहित्य विषय के पाठ्यक्रम में शामिल है.


नालंदा खुला विश्वविद्यालय (एम0 ए0)में शामिल पुस्तकें 
1. एकलव्य (प्रबंध काव्य)
2.कजरिया(कहानी-संग्रह) 
मगध विश्वविद्यालय(बी0 ए0) मे शामिल पुस्तके
1.खोंइचा के चाउर (निबंध-संग्रह)
2.माटी के सिंगार (शब्द-चित्र)
3.माटी के मर्म (शब्द-चित्र)

इनकी साहित्य साधना के लिये ग्रियर्सन पुरस्कार ,लोकभाषा साहित्यकार पुरस्कार एवं कृष्णमोहन स्मृति सम्मान सहित कई पुरस्कारो से सम्मानित किया गया है.



ऐसे व्यक्तित्व से मिलकर आज का दिन मेरे लिये यादगार रहेगा . उन्होने अपनी संस्मरणात्मक पुस्तक "जिन्दगी अतुकान्त कविता" जो हाल ही मे प्रकाशित हुई है, मुझे भेंट की.

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

किताब-ए-बिहार(बिहार से जुड़ी किताबों की महफिल)-1


नीलोतप्ल मृणाल संग्रामपुर मुँगेर के रहने वाले है. 2012-13 मे दिल्ली के मुखर्जी नगर में आई0 ए0 एस0 की तैयारी करने गये.  आई0 ए0 एस0 तो नही बन सके परन्तु वापस लौटे तो साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ. वर्ष 2015 मे मुखर्जी नगर और हिंदी-पट्टी के अभ्यार्थियों को केन्द्र में रखकर "डार्क हार्स" ऩामक उपन्यास लिखा जिसे खूब पढा जा रहा है . वर्ष 2016 मे साहित्य अकादमी  युवा साहित्यकार पुरस्कार मिला.    


            
 उपन्यास का कथा विन्यास भागलपुर से प्रारंभ होकर दिल्ली के मुखर्जी नगर में विस्तार पाता है. १२० पन्ने के उपन्यास में मुखर्जी नगर के शरीर से बिहार की आत्मा लगातार झाँकती रहती है. भाषा पर पटना की बोली हावी है. सहज भाषा और संवाद इसे रोचक बनाता है. पात्रों का कम होना पाठक को कथानक के साथ चलने में सुगम बनाता है, कुल 10-12 किरदार में से 8 आई0 ए0 एस0 के अभ्यार्थी ही है. कथा में जिग्यासा सिर्फ पात्रों की सफलता-असफलता को लेकर होती है.
       मैंने सुना था कि राही मासूम रजाँ के उपन्यास " आधा गाँव" को साहित्य अकादमी पुरस्कार इसलिए नहीं मिला क्योंकि उसमें गालियाँ अधिक थी. परन्तु  "डार्क हार्स" में "झाँट " " भकलंड" "बकचोदी" जैसे शब्दो का धड़ल्ले से प्रयोग हुआ है .अकादमी की यह स्वीकार्यता मन मे संशय पैदा करता है, "आधा गाँव" और "काशी का अस्सी" जैसे उपन्यासों को अकादमी पुरस्कार नही मिलने पर. उपन्यास ख़ूब बिक रहा है , कई संस्करण निकल चुके है.
     पुस्तक की भूमिका के बाद पाँच लोगों की टिप्पणी है, पाँच मे से चार टिप्पणीकार आई0 ए0 एस0 है.जिसे देखकर लगता है कि लेखक उस 'भौकाल' से मुक्त नहीं हो सके है जिसे खंडित करने के लिये यह रचना की गई है. 

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

बिहटा डायरी-4(प्रो0 हाउजर की अपराध-बोध से मुक्ति)

सीताराम आश्रम से प्रो0 हाउजर द्वारा भारत के किसी ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेज को अपने साथ बिना सरकार की अनुमती के ले जाना विधि-विरूद्ध था. यह जानते हुए भी उन्होने ऐसा क्यों किया यह जाँच का विषय है. यदि आश्रम में दस्तावेज अच्छी स्थिती मे नहीं थे तो उन्हे इन दस्तावेजों को राज्य सरकार के अभिलेखागार में संरक्षित करवाने का प्रयास करना चाहिये था. यह एक तरह से ऐतिहासिक दसतावेजों की चोरी तो थी ही इतिहासकार के ethics के भी प्रतिकूल था. ऐसा कर उन्होने कई शोधार्थियों को, जो इन विषयों पर शोध कर रहे थे उन्हें इन दस्तावेजों से वंचित कर दिया. एक सार्वजनिक संपदा को निजी संपत्ती बना दिया.
      प्रो० हाउजर  संभवतः इस अपराध-बोध से ग्रस्त रहे. जीवन के अंतीम पङाव में उन्होंने इन दस्तावेजों को बिहार सरकार को लौटाने का निर्णय लिया. दिनांक 01.07.2018 को पटना  ए0 एन0 सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान आकर एक संक्षिप्त कार्यक्रम में इसे केन्द्र सरकार के मंत्री की उपस्थिती में बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री को लौटा दिया. कार्यक्रम में उनके शोध सहायक श्री कैलाश चंद्र झा ने कहा की प्रो0 हाउजर सी0 आई0 ए0 ऐजेंट नही थे. इस घटना के ग्यारह माह बाद 01 जून 2019 को 92 वर्ष की आयु उनकी मृत्यु हो गयी, मानो यह बोझ उनकी मुक्ति मार्ग में बाधक बन खड़ा था.

बिहटा डायरी-3(क्या प्रो० हाउजर सी० आई० ए० के एजेंट थे ?)


प्रो0 हाउजर का बिहार किसान आन्दोलन से लगाव के कारण बिहटा के सीताराम आश्रम और ए0 एन0 सिंह समाज अध्ययन संस्थान आना जाना लगा रहा. 60-70 के दौरान शोध के क्रम में वे सीताराम आश्रम से कुछ दस्तावेज जो स्वामी सहजानंद से जुड़े थे ; को अमेरिका लेते गये. इस प्रकरण ने बाद मे एक नये विवाद को जन्म दिया. उनपर आरोप लगा कि वे इतिहासकार के  छद्म वेश में सी0 आई0 ए0 के ऐजेंट है, और यहाँ से महत्वपूर्ण दस्तावेज की चोरी कर रहे है. इसकी अनुगूँज बिहार विधान मंडल में भी सुनाई देने लगी. पर हाउजर का काम जारी रहा. 1974 में रसायन शास्त्र से स्नातक कैलाश चंद्र झा जो पटना से है, उनके शोध सहायक बने. जब 1985 मे वे प्रो0 हाउजर के सहयोग से किडनी का ईलाज कराने अमेरिका गये तो उन्होंने उन दस्तावेजों को देखा जिसे प्रो0 हाउजर ने उतकृष्ट तरीके से संरक्षित कर रखा था.
   उन्होंने इस बात का खुलासा कभी भी नही किया कि इन दस्तावेजों को कैसे हासिल किया खरिदा या चुराया !

                                                                                         क्रमशः ....... 

शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

बिहटा डायरी-2 (सीताराम आश्रम एवं प्रो०वाल्टर हाउजर /Sitaram Ashram and Professor walter Hauser )


बिहटा के सीताराम आश्रम ने कई विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया . इन्ही में से एक थे वाल्टर हाउजर जो शिकागो विश्वविद्यालय में इतिहास के छात्र थे . 1957 में बिहार प्रदेश किसान सभा पर शोध प्रारंभ किया. इसके बाद इनका सीताराम आश्रम बिहटा और पटना लगातार आना-जाना होता रहा.
किसान नेता यदुनंदन शर्मा से मिले. शोध के दौरान इन्होंने डा0 राजेन्द्र प्रसाद, श्री कृष्ण सिंह  ,के0 बी0 सहाय ,जयप्रकाश नारायण एवं कर्पूरी ठाकुर जैसे शिर्ष नेताओं का साक्षात्कार लिया . सन् 1961 मे इनका पी० एच० डी० का शोध आलेख पुरा हुआ. इसके बाद वे वर्जिनिया विश्वविद्यालय के दक्षीण एशियायी अध्ययन केन्द्र में इतिहास के प्रोफेसर बने. 
                                                      बिहार से इनका लगाव कम नहीं हुआ बल्कि बढता गया. बिहार का किसान आन्दोलन उनका प्रिय विषय था.  वे इससे जुङे अन्य विषयों पर शोधरत रहे. कई पुस्तकों की रचना की जो इस  मील का पत्थर हैं.उनकी कुछ पुस्तकओं का विवरण निम्न प्रकार है. 


Swami Sahajanand and the Peasants of Jharkhand: A View from 1941 


The Bihar Provincial Kisan Sabha 1929–1942: A Study of an Indian Peasant Movement


Sahajanand on Agricultural Labour and the Rural Poor

My Life Stuggle: A Translation of Swami Sahajanand Saraswati`s Mera Jivan Sangharsh


Culture, Vernacular Politics, and the Peasants: India, 1889-1950: An Edited Translation of Swami Sahajanand`s Memoir 

                           प्रो०  हाउजर लगातार छः दशक तक अपने छात्रों को  इस क्षेत्र मे शोध के लिये प्रेरित कर उनका मार्गदर्शन करते रहे हैं. उन्होंने ए0 यांग,विलियम पिंच, प्रो0 क्रिस्टोफर हिल और प्रो0 वेंडी सिंगर को बिहार विषयक शोध के लिये प्रेरित किया. इनमे से दो पुस्तको (My Life Stuggle और Culture, Vernacular Politics, and the Peasants: India, 1889-1950 ) में पटना के उनके शोध सहायक कैलाश चन्द्र झा भी सह लेखक है.
                                                          मैने पटना विश्विद्यालय से इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की . किसान आन्दोलन मेरे पाठ्यक्रम मे शामिल था. मै प्राय: सभी  कक्षाओं में उपस्थित भी रहा  . विद्वान प्रोफेसरों का सानिध्य मिला. पर आज मुझे दुःख इस बात का है कि किसी ने मुझे प्रो0 हाउजर, उनकी किताबों या सीताराम आश्रम के बारे में कुछ नहीं बताया.
                                                                                   
                                                                                    क्रमशः ........... 

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

बिहटा डायरी-1


पटना से 34 कि0 मी0 पश्चिम बिहटा राघोपुर में "सीताराम आश्रम" है. इसकी स्थापना स्वामी सहजानंद सरस्वती ने सन् 1927 ई0 मे किया था. इसी वर्ष बिहार ''पटना पश्चिमी किसान सभा' का गठन हुआ था, जिसका कार्यालय ईसी आश्रम में था. 1929 में 'प्रांतीय किसान सभा' और 1936 से 1944 तक 'अखिल भारतीय किसान सभा' का कार्यालय रहा है.
इस दौरान यह किसान आन्दोलन का प्रमुख केन्द्र रहा है. 1939-40 में इस आश्रम मे सुभाष चंद्र बोस का आगमन हुआ था.स्वामी सहजानंद जीवन पर्यन्त इस आश्रम से जुड़े रहे . इनकी समाधी भी आश्रम परिसर मे ही है. आगे चलकर यह परतंत्र भारत के किसान आन्दोलन पर शोध का प्रमुख केन्द्र बना.
                                                                                     क्रमशः......