गुरुवार, 18 जुलाई 2019

जहानाबाद डायरी-4: शहर के पहले श्रमजीवी कलाकार वासुदेव प्रसाद केसरी उर्फ कल्लू पेंटर


वासुदेव प्रसाद केसरी उर्फ कल्लू पेंटर जहानाबाद के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यहाँ गाड़ी पेंट करने की शुरुआत की.इनके साथ रामजी मिस्त्री ने डेंटिंग की शुरुआत की. ये जन्मजात कलाकार थे. राजकुमार उर्फ राजू जी ने इनके बारे में मुझे बताया. इन्हें ये अपना गुरू मानते हैं.
 राजू जी अंतराष्र्टीय ख्याति प्राप्त चित्रकार है. श्री केसरी ने जीविका के लिये जहानाबाद बाज़ार मे "आधुनिक कला केन्द्र" खोला. कुछ दिनों बाद 1970 में कृष्णा खेतान ने "शिवशंकर चित्र मंदिर" सिनेमा हाल की शुरुआत की. तीन दशक तक यह इस शहर के का आकर्षण का केन्द्र बना रहा . यहाँ बाक्स आफिस की हिट फिल्में लगती, जिसका टिकट पा लेना बड़ी समस्या थी . लोग दूर-दूर से सिनेमा देखने आते. सिनेमा हाल खुलने के बाद खेतान जी श्री केसरी को बुलाकर ले आये. "आधुनिक कला केन्द्र" शिवशंकर चित्र मंदिर के पास आ गया. पहले पोस्टर से हीरो-हिरोईन के चित्र को काट पैनल पर लगाकर नाम लिखा जाता था. केशरी जी ने पहली बार सिनेमा हाल में लगने वाले पोस्टर की परंपरा मे नया आयाम दिया 15फिट लंबाई और चौड़ाई के पैनल पर बड़ा पेंटिंग बनाया. उसके बाद 40 फुट गुणा 8 फुट के पैनल पर दो भाग में बनाकर  इसे जोड़कर लगाया, जिसने हाल के साथ-साथ सिनेमा को भी भव्य बनाया . इसके बाद सिनेमा हाल में पोस्टर की जगह पेंटिंग लगाई जाने लगी. 1988 ई० मे 'आईना स्टूडिओ' खोला. सन् 1998 मे बड़े रंगीन पोस्टर छपकर आने लगे तब से पेंटिंग बनाने की परंपरा बंद हो गया. केसरी जी पेंटिंग ,स्थापत्य,फोटोग्राफी, वाहन पेंट , मूर्तिकला(पी० ओ० पी० )के उस्ताद थे, ज्ञान बाँटने मे विश्वास था.
             राजू जी ने आगे बताया कि 1977 ई० मे जब इंदिरा गाँधी जहानाबाद आई थी तो उनका जहाज खराब हो गया  . डैना किसी पक्षी से टकराकर क्षतिग्रस्त हो गया था. दिल्ली या पटना से इंजीनियर बुलाने की तैयारी हो रही थी. पायलट ने एक स्थानिय दो-भाषिये को अँग्रेजी में समस्या बताई, तब रामजी मिस्त्री और वासुदेव मिस्त्री ने मिलकर बैल के सिंघ से ठोककर डैने को ठीक किया और जहाज उड़ा. बैल के सिंघ की विशेषता  है कि इससे ठोकने पर  दाग नहीं आता है. 
  "आधुनिक कला केन्द्र" धीरे-धीरे शहर की पहचान बन गई. राजू जी ने भी कलाकार बनने की पहली तालिम यहीं से पाई, फिर पटना आर्ट कालेज गये. यहाँ हिट फिल्मों की टिकट के लोग पैरवी करते. जय माँ संतोषी फिल्म देखने के लिये इतने लोग आते थे कि इन्हें अपनी दूकान बंद करनी पड़ी. पाँच शो चलने के बाद भी लोग सुबह से बैलगाड़ी से आकर बैठे रहते. कृष्णा खेतान शौकिन आदमी थे. शिव शंकर चित्र मंदिर में लगे दो फिल्में "जुगनू" और "पूरब और पश्चिम" का हैंडबिल पूरे इलाके में हेलिकाप्टर से गिराये गये. सन् 77-78 में नरगिस एवं जाहिदा जहानाबाद आईं थी तो कृष्णा खेतान के घर ही गई थी.
      राजू जी ने बताया कि सुभाष घई 70' के दशक में जहानाबाद आये थे 10-15 दिनों तक सिढीया घाट पाठकटोली मे मदन बाबू के घर रहे थे. मदन बाबू कलाकार थे उन्होंने एक फिल्म "Murder in circus" में सुजीत कुमार के साथ काम किया था.
                 राजू जी अद्भुत कलाकार हैं .
गौतम बुद्ध उनके पेंटिंग का पसंदिदा विषय है.
चाकू से पेंटिंग करना कला के क्षेत्र में बिल्कुल नया प्रयोग है जिसका श्रेय इन्हीं को जाता है.
उपर के पेंटिंग को देखकर इनकी कला के ऊँचाई का सहज अनुमान लगाया जा सकता है. कला श्री संस्था इन्होने 80' के दशक में अपने कला को जन सामान्य तक पहुचने के लिए बनाई. लोग बताते है की उस समय बहु-बेटियों को घर से निकलना इतना आसन नहीं था , पर इस संस्थान की उपलब्धि है की वे यंहा आकर नियमित सिखने लगी. 

   वाणावर महोत्सव 2014 के अवसर पर मैंने इनसे बराबर गुफाओं के इतिहास पर तीन पेंटिंग बनाने का अनुरोध किया
वे सहर्ष तैयार हो गये. इसकी थीम और पृष्ठभूमि मैने विस्तार से उन्हें बतायी पहला  कृष्ण-वाणासुर संग्राम से, दूसरा गौतम बुद्ध द्वारा बराबर पहाड़ के शिर्ष पर से मगध का अवलोकन एवम
तीसरा राजा दशरथ द्वारा आजीवकों को गुफा दान से संबंधित था.
इन पेंटिंग्स को वाणावर महोत्सव के अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री एवम अन्य मंत्रीगण को भेंट की गई.
                राजू जी से श्री केसरी की चर्चा सुन मैंने उनसे मिलने की इच्छा प्रकट की, पर  उन्होंने बताया की कुछ ही दिन पहले (2015 ई0 में)  वे अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गये है. 

शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

टेंहटा डायरी / Tenhta Dayari

25 नबम्बर 2018 
ज्याँ द्रेज और अरुणंधती राय को सुनने की इच्छा लिये मेरे कदम ग्यान भवन (पटना)की ओर बढ. गये. 2.00 बजे अपराह्न हाल मे प्रवेश किया तो किसी अन्य वक्ता का भाषण चल रहा था. महिला सशक्तिकरण और समानता के सिद्धांत पर बात करते हुए वे बहक गये थे उपस्थित पुरुषों से पुछ रहे थे कि कितने लोग अपनी पत्नी के कपड़े धोते हैं. हाथ उठाने को कह रहे थे.
आगे की पंक्तियाँ भरी हुई थी, मैं पीछे की पंक्ति मे खाली कुर्सी तलाश रहा था, वक्ता सरदार वल्लभ भाई पटेल को दलित बता रहे थे. मेरे साथ हाल में उपस्थित कई लोग आश्चर्य में पड़ गये. बाद में पता चला कि ये दक्षिण भारत के दलित विमर्श के बड़े हस्ताक्षर हैं. इस आयोजन में बिहार के सरकारी कर्मचारी-पदाधिकारी के दलित संगठनों की अहम भूमिका है. इसके बाद अरुणधती राय का वक्तव्य प्रारंभ हुआ. उन्होंने मंच संचालक को पी॰ एच॰ डी॰ नही रहने के वाबजूद डाक्टर सम्बोधन के लिये धन्यवाद दिया.चीन और भारत की अर्थव्यवस्था के मौलिक अंतर का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि चीन में उत्पादक ही बिक्रेता है. श्रम बाजार को संचालित करता है, मार्गदर्शन देता है. परन्तु भारत में उत्पादक और बाजार के बीच एक व्यापारी वर्ग है, जिसमें परंपरागत रुप से एक खास जाति का वर्चस्व है. यही बाजार को संचालित करता है. विश्वविद्यालयों में दलित-विमर्श के साथ बनिया जाति और बाजार में उसके दबदबे पर भी शोध होना चाहिये. मुझे लगा कि हिन्दी से दूरी के कारण वे ऐसा बोल रही है, कई जातियों पर हिन्दी में शोध हुये है. दलित विमर्श या किसी अन्य विमर्श की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इस पर काम करने वाला या बोलने वाला कहीं न पक्षकार हो जाते हैं.
        ज्याँ द्रेज का वक्तव्य सबसे संतुलित और तर्कपूर्ण  था.  उनकी यह स्थापना कि भारत में बनने वाला कानून और इसे लागू करने वाली एजेंसी अंतीम पायदान पर बैठे लोगों के लिये नहीं है. इस संबंध में उन्होने मनरेगा कानून के लागू होने की विफलताओं का उल्लेख किया. काम माँगने का एक भी मामला पिछले दस सालों मे न्यायालय तक नहीं पहुँचा उल्टे मनरेगा के मुजफ्फरपुर के व्हिसील व्लोअर श्री सहनी ने लोगों को एकत्रित कर काम माँगा तो उन्हें कई अपराधिक मामलों मे अभियुक्त बना दिया गया.
  वक्तव्य के बाद आयोजकों ने सभी को स्मृति चिन्ह् एवं अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया . स्मृति चिन्ह् कुछ जाना पहचाना लगा, अरे ! यह तो राजीव की कलाकृति है. राजीव पुआल (agriculture waste )से नायाब चित्र बनाते हैं. ये जहानाबाद जिला के मखदुमपुर प्रखंड के टेंहटा गाँव के निवासी हैं. इनका  बनाया बानावर गुफा-द्वारा का चित्र जहानाबाद जिला का प्रतीक-चिन्ह् बन गया है.

                        जिस मंच पर घंटों देश के बड़े-बड़े विद्वानों ने श्रम की महता बताते हुये इसकी उपेक्षा पर तंज कसा , वहीं राजीव की इस श्रमसाध्य कला पर आयोजकों द्वारा एक शब्द भी नहीं कहना विरोधाभाषी लगा. इसके बारे में न बताये जाने के कारण अतिथि इन स्मृति-चिन्ह् के महत्व को कभी नहीं जान पायेगें.
     इस कार्यक्रम की दो विषेशतायें थी, आज अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर साधु-संतों का अखिल भारतीय सम्मेलन चल रहा था. दूसरा इससे सभी राजनीतिक दल के नेताओं को दूर रखा गया था.