सोमवार, 9 मई 2016

पूर्णिया डायरी (purniya dayri)- 5

(२००५ में मै पूर्णिया के सिकलिगढ़ और मौर्य कालीन स्तम्भ मनिकथ्म्ब पर काम कर रहा था. एक दिन एक पत्रकार महोदय ने मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की. अगले दिन मिले इतिहास कला और संस्कृती में इनकी गहरी दिलचस्पी थी. पुरानी डायरी छुट्टी के दिन उलट रहा था, उनका फोन नंबर था लगाया , बात हुई लगभग दस साल बाद . दोस्ती हरी हो गयी. आज भी उतने ही जीवंत और उर्जावान . शाहनवाज अख्तर आजकल रांची में है. पूर्णिया के स्थापना दिवस से जुड़ा संस्मरण जो उनके फेसबुक वाल पर है उसे ही यथावत रख रहा हूँ.)

14 फरवारी को पूरी दुनिया प्यार दिवस के रूप में मनाती है...मगर 14 फरवरी बिहार के पूर्णिया ज़िले का जन्म दिवस है...14 फ़रवरी1770 को एक नौजवान अँगरेज़ कलेक्टर मिस्टर डुकरेल ने पूर्णिया के सबसे पहले कलेक्टर के रूप में पदभार संभाला था...2008 से पहले ये बात किसी को मालूम नहीं थी...बिहार सरकार ने ज़िलों के आस्थापन दिवस मनाए जाने का निर्देश तमाम ज़िलों को दिया.ये आदेश पूर्णिया भी पहुंचा....तत्कालीन कलेक्टर श्रीधर चेरुबोलु....ने इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉक्टर रामेश्वर प्रसाद से आग्रह किया की पूर्णिया ज़िले का जन्म दिवस इतिहास की रौशनी में तै कर के बताएं....उस महत्वपूर्ण बैठक में एक पत्रकार के तौर पर मैं भी मौजूद था और मेरे सहयोगी और पराम् मित्र राजेश कुमार शर्मा भी मौजूद थे....हम मीडिया कमिटी में थे.......डॉ रामेश्वर प्रसाद ने लगभग भूमिगत होकर अपनी रिसर्च शुरू कर दी...यहां तक की हम से भी मिलना गवारा नहीं किया....कहला भेज की अभी डिस्टर्ब न किया जाए जब वो किसी नतीजे पे पहुँच जाएंगे तो सब से पहले मुझे ही बताऐंगे.....कई हफ़्तों में मेरी बड़ी जिज्ञासा रही की पूर्णिया की जन्म तिथि कब ठहरेगी....और एक दिन डॉ साहेब का सुबह सुबह फ़ोन आ ही गया की आ जाइये....और जब मैं उनके पास पहुंचा तो उनकी शक्ल देख कर हैरान रह गया...बिलकुल सद्दाम हुसैन जैसे लग रहे थे...यानी सद्दाम हुसैन जिस हुलिए में गिरफ्तार हुए थे....उनकी शक्ल भी वैसी ही लग रही थी...अपनी लाइब्रेरी में किताबों काग़ज़ों से घिरे...डॉ रामेश्वर प्रसाद ने ख़ुशी ख़ुशी ये खुशखबरी दी की पूर्णिया के बर्थडे का पता चल गया...उन्हों ने वो लैटर दिखाया जिस में मिस्टर डुकरेल को पूर्णिया के कलेक्टर का चार्ज लेने का आदेश लिखा था...उसपर तारीख 14 फरवरी 1770 लिखी थी.....14 फरवरी 1770 को चार्ज लेने वाले...डुकरेल की उम्र उस वक़्त 22 साल की थी......नौजवान ख़ूबसूरत और बेहद रहमदिल अँगरेज़ अफसर ने एक अकाउंट में लिखा है...की जिस ज़माने में उसने पूर्णिया की ज़िम्मेदारी संभाली उस पूरे इलाके में कहत यानी फेमिन फैला हुआ था....हर 50 क़दम पर किसी न किसी इंसान और जानवर की लाश पड़ी होती थी...डुकरेल को 15 दिन तो लाशें ही उठवाने में लग गए.......एक दिन जलालगढ के पास के एक गाँव से ये खबर मिली एक गाँव में एक आदमी की भूख से मौत हो गयी है..जिसकी शादी हाल ही में हुई थी.....विधवा स्त्री ने सति होने की ठान ली है....और गाँव में सति प्रथा के मुताबिक साड़ी तैयारयांं भी हो चुकी है...विधवा चिता पर बैठ भी चुकी है......कलेक्टर डुकरेल ने तेज़ रफ़्तार में गाडी चलते हुए उस गाँव में चलने का हुक्म ड्राईवर को दिया....डुकरेल जब गाँव पहुंच तो मैदान में भीड़ जमा थी......कलेक्टर के साथ पुलिस भी थी...डुकरेल ने महिला से चिता के साथ न जलने की अपील की मगर वो महिला तैयार नहीं हुई...लंबी बहस चली....उस महिला ने कलेक्टर से सवाल पुछा के वो किस के सहारे जिएगी....कौन उससे दोबारा शादी करेगा.....मजमा खामोश रहा.....तभी डुकरेल ने बुलंद आवाज़ में कहा मैं करूँगा तुमसे शादी........कुछ तर्क वितर्क के बाद महिला चिता से उतर आई......और डुकरेल ने अपना वादा निभाते हुए उस महिला से शादी कर ली.....और डुकरेल कई सालों तक पूर्णिया के कलेक्टर बने रहे...जलालगढ के पास आज भी डकरैल नाम का एक गाँव है..ये वहीँ गाओं है..जो डुकरेल की ससुराल भी है.....और फिर उनका कलकत्ता तबादला हो गया......डॉ रामेश्वर प्रसाद के शोध के मुताबिक कालांतर में डुकरेल कलकत्ता से लंदन और फिर वहाँ से अमेरिका चले गए...मशहूर बर्ड विशेषज्ञ डॉ सालिम अली ने अपनी किताब में डुकरेल परिवार की एक 100 साल बुज़ुर्ग एक महिला से मुलाक़ात का ज़िक्र किया है.....जो पूर्णिया की रहने वाली थी....और डॉ सालिम अली को उसने अमेरिका में चूड़ा और मूढ़ी के साथ साग खिलाया था और कहा था की ये मेरे देस का खाना है...और मुझे भी बेहद पसंद है...डुकरेल परिवार अमेरिका में आज भी बेहद धनि परिवारों में शुमार होता है..उनके वहाँ 300 से भी ज़्यादा पेट्रोल पम्पस हैं...डॉ रामेश्वर प्रसाद को डुकरेल के पड़पोते ने पात्र भी लिखा था और पूनिया आने की ख्वाहिश भी जताई थी......पूर्णिया का इतना दिलचस्प इतिहास बताने वाले डॉ रामेश्वर प्रसाद का दिल से धन्यवाद करता हूँ 8 सा हो गए उनसे नहीं मिला पता नहीं कैसे होंगे....अल्लाह से दुआ है की वो स्वस्थ हों....मेरे वतन से जुड़ा हर पहलु हर आमो ख़ास मुझे बेहद अज़ीज़ है......14 फ़रवरी को जब पहला आस्थापन दिवस मनाया गया था तो उस समय सभी पूर्णिया वासी को ख़ुशी हुई थी....मेरे आदरणीय भैया विजय श्रीवास्तव जी..अक्सर मुझे फ़ोन कर उन दिनों की याद दिल दिया करते हैं....रेनू माटी...से जुड़े तमाम लोग और तमाम पूर्णिया वासिओं को मेरी और से आस्थापन दिवस की ढेरों बधाइयाँ.....