शनिवार, 22 जून 2019

सकरा डायरी / sakra Dayari

21.6.2019
सकरा मुजफ्फरपुर जिलान्तर्गत ढोली प्रखंड में  है. यंहा रहते है सोहन लाल आजाद. फक्कङ संत कबीर. लाख समझाने के बाद भी वे न माने .जब बिहार भीषण लू की चपेट में था, सैकड़ों लोग काल के गाल में समा चुके थे ; तब ये 18 जून को साईकिल से हजारों किलोमीटर लम्बी  शहीद यादगार यात्रा पर निकल पड़े.  आज पटना पहुँचे , कुछ लोग उनके स्वागत में शहीद स्मारक के पास एकत्रित हुऐ थे.
इस यात्रा में वे सकरा से मुजफ्फरपुर, पटना,बनारस,इलाहाबाद, दिल्ली, अमृतसर,कटक, मिदनापुर, के साथ कई शहीद स्मारकों का दर्शन करेगें. कब लौटेगें उन्हें खुद पता नहीं. सन् 1992 से श्री आजाद एैसी यात्रायें कर रहे हैं. साईकिल के मध्य डंडे में राष्टृीय ध्वज होता है , पीछे सिमेंट की खाली बोरी में कुछ जरुरी सामान.
किसी शुभचिंतक ने साईकिल खरीदकर दे दी, किसी ने झंडा, तो किसी ने अपना ए॰ टी॰ एम॰ दे दिया है .  श्री सोहन लाल आजाद  जी के पास न कोई जमीन है, न आय का कोई अन्य साधन. इन्होंने विवाह भी नहीं किया है. चूँकि ये गरीब है, अति पीछड़ी जाति से है, इसलिए इनकी यात्रा कभी खबर नहीं बन सकी

गुरुवार, 13 जून 2019

पटना डायरी-4 (तब सिपाही जमींदार बन जाते थे /When soldiers became landlords)

पलासी और बक्सर युद्ध में विजय के बाद कंपनी बहादुर का उत्साह सातवें आसमान पर था .इस जीत का श्रेय बंगाल आर्मी के सिपाहियों को था. इनकी  सेवा से खुश होकर 18 फरवरी 1789 को  ब्रितानी हुकूमत ने एक रेगुलेशन लाया; इसके अनुसार बंगाल आर्मी के सैन्य ओहदादरों ( रिसालदार से सिपाही तक ) के लिए अवकाश प्राप्ति के उपरांत कुछ गैर-आबाद , बंजर जमीन बंदोबस्ती की जाती थी. उसे कृषि योग्य बनाने हेतु ग्रेच्युटी की भी  व्यवस्था थी. यह पटना जिले के साथ बंगाल के लोअर प्रोविंस के सभी जिलों में लागू था. विभिन्न ओहदों के लिए भूमि और ग्रेच्युटी का पैमाना निम्न प्रकार निर्धारित था.
रसालदार को 600 बीघा जमीन और 150 रुपया ;
सूबेदार  को 400 बीघा जमीन और 100 रुपया ;
जमादार को 200 बीघा जमीन और 50 रुपया ;
हवलदार को 120 बीघा जमीन और 30 रुपया ;
नायक को 100 बीघा जमीन और 20 रुपया ;
सिपाही  को 80 बीघा जमीन और 15 रुपया ;
  यह जमीन इन सैनिकों को आजीवन लगान मुक्त(rent free) दी जाती थी. इनके मरनोपरांत समाहर्ता ऐसी जमीनों का स्थाई लगान (fix rent) निर्धारित करते थे . जिसकी अदायगी उनके वारिस करते थे. इसका १/१० भाग मालिकाना के रूप में प्रोपराइटर  को देना पड़ता था.
  आज शायद ही किसी एक व्यक्ति के नाम से बिहार में 200 बीघा जमीन हो. सन 1804 ईस्वी में भूमि आबंटन की सीमा घटा दी गयी.
 रसालदार को 100 बीघा जमीन;
 सूबेदार  को 50 बीघा जमीन ;
 जमादार को 200 बीघा जमीन ;
 हवलदार को 30 बीघा जमीन  ;
 नायक को 250 बीघा जमीन  ;
आधुनिक भारत में पेंशन और इसके नगदीकरण की शुरुआत यंही से हुई है.