सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

पूर्णिया डायरी-11 (मिसेज डुकारेल का सच/ Truth of Mrs ducarel)

इस पोस्ट को पढ़कर पूर्णिया वासियों को थोड़ी हताशा हो सकती है. पर इसे एक ना एक दिन आना ही था, बहुत दिनों तक मैं इसे जब्ब कर नहीं रख सकता. इतिहास पर किसी का बस नहीं है, इसमें कल्पना की जरा भी गुंजाईश नहीं होती. न जाने किस परिस्थिति में अबू तालिब ने 336 पन्नों के यात्रा वृतांत में एक पंक्ति लिखी की वह मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel ) से मिला, जिसे गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel) ने पति की चिता (सती होने जा रही स्त्री ) से उतारकर विवाह किया था .
                                                इस पंक्ति ने 204 साल बाद पूर्णिया में तूफान ला दिया समाचार पत्रों ने बिना तथ्यों की पड़ताल किए धड़ा-धड़ इसे एक अद्भुत प्रेम कहानी बता, चटकारे लेने लगे. 18वीं सदी के पूर्णिया  पर शोध के क्रम में  अन्य समकालीन साक्ष्यों की गहरी पड़ताल से यह ज्ञात हुआ कि गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)ने जिस महिला से विवाह किया था वह मुसलमान थी.
                                  डुकारेल के बाद की पीढ़ी के लोगों ने जो वंशावली दी है उसमें गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)की पत्नी को पूर्णिया के महाराजा की बेटी बताया गया है. वंशावली के विभिन्न मानक वेबसाइटों में उसके निम्नांकित नाम दिए हैं
 कहीं जेबुन्निसा
 https://gw.geneanet.org पर जरफान्निशा खानम 

कहीं  सर्फुलनिशा खानम दर्ज  है.
                      इनका जन्म 1758 ईस्वी में और मृत्यु 1822 में इंग्लैंड में बताया गया है. इंग्लैंड जाने के बाद उन्होंने ईसाई धर्म को अंगीकार कर बपतिस्मा (Baptism) लिया था . अलग-अलग वंशावली वेबसाइट पर गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)के परवर्ती पीढ़ी के अलग-अलग लोगों ने सूचनाएं दी है, इनमें एक समरूपता है कि सभी ने मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel )को मुसलमान बताया है .
                इस संदर्भ में दूसरे  महत्वपूर्ण अभिलेखीय साक्ष्यों, का जिक्र करना भी जरूरी है, जिसके अध्ययन से यह कहने की गुंजाइश नहीं रह जाएगी कि गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)ने किसी हिंदू विधवा (जिसे सती होने के लिए पति कि चिता पर बैठाया जा रहा था ) से विवाह किया था. ये अभिलेख है इंग्लैंड की राष्ट्रीय अभिलेखागार में रक्षित  डुकारेल पेपर(Ducarel paper), जिसे डुकारेल परिवार के परवर्ती वंशज पी0जे0 पामर (P.J.Palmer)ने जमा किया था इसमें वर्ष 1784 से 1796 तक  गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)के वे पत्र शामिल है जो भारत से उनके मित्र,एटार्नी और ईस्ट इंडिया कंपनी के सेवकों ने व्यक्तिगत संबंध के कारण भेजा था. इसमें कुछ पत्रों का उल्लेख यहां करना मैं आवश्यक समझता हूँ. 
12 फरवरी 1788 को जेम्स कॉली (James Collie) जो वर्द्धमान में सर्जन थे, ने गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)को लिखे पत्र में मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel )भाई मिर्जा आलम बेग(Mirza Allam Beg)का जिक्र किया है, जिन्हें भत्ता (allowance ) मिलने में कुछ कठिनाई का सामना करना पड़ रहा था . 
27 फरवरी 1788 को थॉमस शॉट(Thomas Short जो कभी डुकारेल के सहायक हुआ करते थे) ने कोलकाता से  गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)को भेजे गए एक पत्र में मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel )के भाई मिर्जा आलम बेग को ॠण के कारण हो रही कठिनाइयों का जिक्र किया है.
 15 अक्टूबर 1788 को थामस शाट(Thomas Short ) ने मिर्जा बेग की नियुक्ति में मदद करने में असमर्थता व्यक्त की.
माह जनवरी एवं 26 फरवरी 1789 जेम्स कॉलिंग(James Collie) जो वर्द्धमान में सर्जन थे ने गेर्राड गुस्टावस डुकारेल(Gerard Gustavus Ducarel)को भेजे पत्र में मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel )के परिवार मिर्जा फैमिली को एक लॉ सूट दाखिल होने से हो रही कठिनाइयों का जिक्र किया है 
2 नवंबर 1789 जेम्स कॉलिंग(James Collie)ने बर्द्धमान से मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel )के भाई मिर्जा आलम बेग के बीमारी की सूचना दी है. 
      इन पत्रों में मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel )के भाई का बार-बार जिक्र है.मिसेज डूकारेल(Mrs Ducarel )का मिर्जा फैमिली से होना यह प्रमाणित करता है कि वह एक भारतीय मुसलमान थी जो बाद में ईसाइ धर्म को अंगिकार कर एलिजाबेथ हो गई थी. 
                संभव है अबू तालिब ने  किसी सुनी-सुनाई बात पर यात्रा वृतांत में  यह टिप्पणी दर्ज कर दी हो. या फिर फारसी में लिखे गए यात्रा वृतांत के अनुवादक ने औपनिवेशिक सर्वोच्चता के लिये एक अंग्रेज अफसर का महिमामंडन कर दिया हो.
जो भी हो इन तथ्यों से न तो डुकारेल की प्रेम कहानी के ओज पर कोई प्रभाव पड़ता है ना ही उसके जेंटलमैन वाले व्यक्तित्व पर.

रविवार, 7 अक्तूबर 2018

वाणावर डायरी-6 (बाबा सिद्धनाथ प्राचीन मंदिर/ancient temple of vanavar )

प्राचीन वाणावर सिद्धनाथ मान्दिर में  सातवीं शताब्दी से भक्तों की निरंतरता बनी हुई है.
यह भारत के उन दुर्लभ मन्दिरों मे से एक है जहाँ हजार वर्षों से जागृत पूजा-पाठ हो रहा है. इसके दीवार की चौड़ाई 4 फुट से अधिक है.
छत पत्थर के स्तंभ पर टिका का है जो  पत्थर के चौड़े सलेब्स से बना है यह नागर शैली के स्थापत्य कला की विशेषता है.


पर्वत के शिखर पर शिवलिंग है जो गर्भगृह के अंदर है. गर्भगृह के बाहरी दरवाजे पर दाएं-बाएं गणेश की मुर्ति है. मंडप के पश्चमी भाग में दो बड़ी मूर्तियां हैं जो मां पार्वती के रूप में जानी जाती है. इसी प्राचीन मन्दिर को बिना छेड़-छाड़ किये "बाबा सिद्धनाथ मंदिर सेवा समिति" ने इसका जिर्णोद्धार किया.
(तस्वीर: सौजन्य श्री रविशंकर एवं श्री सत्यप्रकाश )

शनिवार, 6 अक्तूबर 2018

इस्लामपुर डायरी 3(Islampur Dayri-3)

जमींदारी तो अँग्रेजों के पहले भी थी. यह कोई नहीं जानता की अंग्रेजों ने स्थाई बंदोबस्त में पुराने जमींदार को ही बरकरार रखा या "सनसेट लॉ" के तहत जमींदार की नई पौध को इस्लामपुर गढ पर रोप दिया, जो उसके प्रति और ज्यादा वफादार था.
 जमींदार साहब ने यह सोच कर अपने इतिहास को लिपिबद्ध  करने का प्रयास नहीं किया कि उनकी हस्ती को कौन मिटा सकता है. लोगों की जुबान पर उनका और उनके परिवार का इतिहास है भला, इसको लिखने की क्या जरूरत. लोग बताते हैं कि चौधरी साहब के परदादा राजा मानसिंह के समय सूबा-ऐ-बिहार के मानिंदे मनसबदार  थे 500 जात औ सवार सैनिकों की मनसबदारी थी. गढ़ के गढ़वाल भी यही सोचते होंगे, पर उस अस्सी बीघे के गढ़ के नीचे कितने महल,कितने नाचघर, कितने खजाने. हाथी घोड़े और समय का सैलाब दवा है .
अकबर रहा ना रहा सिकंदर बादशाह ;
तख्ते जमीन पर सब आए आके चले गए.
  यह हवेली और कचहरी बनने से यहां बाजार बसने लगा. सुबा-ऐ-बिहार की सत्ता का एक प्रशासनिक इकाई बना.
गुमाश्ता, पहलवान, मुंशी, कानूनगो ,अमला-फैला भरा कचहरी, लाल बस्ता, ठेकेदार, मुकर्रीदार,दर-मुकर्रीदार, पत्नीदार, दर-पत्नीदार.रैयतों का आना-जाना और उनका नजराना, एक नया नजरान-घर बना था जहां रोज इसे लेने और रखने के लिए आमला बहाल थे. रैयतों से आम, बेल, जामुन, कटहल, सब्जी की पहली फसल और तालाब की सबसे बड़ी मछली नजर की जाती.
जमींदारी का स्वर्ण युग आने वाला था .वह रैयतों पर मनमानी लगान लगाता और माफ करता.  हवेली बनानी होती तो हवेलीयाना, मोटर खरीदनी होती तो मोटराना जैसे शेष लगाए जाते हैं छः महीने में हवेली खड़ी हो जाती. तब किसी ने कल्पना भी न किया होगा कि जमींदारी व्यवस्था का अंत हो जाएगा.
(इसमें वर्णित पात्र व घटनाये काल्पनिक हैं )

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

वाणावर डायरी-7 (बाबा सिद्धनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार /renovation of vanavar tample)

प्राचीन वाणावर सिद्धनाथ मंदिर का केवल गर्भ गृह और मंडप सुरक्षित है.
इस मंदिर की महंथी समीप के गाँव लोहगढ़ के एक परिवार (विश्वनाथ भारती) को बोधगया मठ से बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में मिली थी. उसी परिवार के श्री बम सिंह अभी वहां के महंथ है. भगवान पर चढ़ावे की राशि के साथ-साथ विभिन्न संस्कार एवं पूजा के लिए निर्धारित शुल्क के रूप मे जो राशि संग्रहित होती है वह महंत जी के पास जाता है. परंतु इनके द्वारा मंदिर के विकास और जीर्णोद्धार कार्य में कोई दिलचस्पी नहीं ली जाती,


यह बात शिव भक्तों को अखड़ती. तेल्हाड़ा एकंगरसराय और मसौढी के कुछ युवा उत्साही लोगों ने मिलकर "मंदिर जीर्णोद्धार एवं विकास समिति" का गठन किया. इसमें श्री सत्य प्रकाश (एकंगरसराय) श्री फौजदार साव, स्व० सिद्धेश्वर प्रसाद (तेल्हाड़ा), श्री रविशंकर (मसौढी) का नाम उल्लेखनी है, इन लोगों ने कई शिवभक्तों को एकत्रित कर इस समिति के तहत मंदिर के समीप एक दान शिविर स्थापित किया.
लोगों से प्राप्त दान से वर्ष 2002 में मंदिर के जीर्णोद्धार का का काम प्रारंभ हुआ जो सात-आठ वर्षों तक चला.
प्राचीन मंदिर के स्वरूप को बिना कोई छेड़छाड़ किए इसके चारे और बरामदे एवं गुंबद का निर्माण किया गया है. इस समिति ने इसके अलावा कई कार्य किए है जलापूर्ति व्यवस्था,यात्री-शेड,आर०ओ०पेयजल एवं धर्मशाला प्रमुख हैं.