बुधवार, 29 अप्रैल 2020

राजगीर डायरी-6

 (गतांक से आगे........)
सूर्यास्त हो चुका था. 5:00 बजने वाले हैं . हम सब सप्तपर्णी गुफा के ऊपर उसी मंदिर के पास पहुंच गए थे जहां आते समय दुविधा में फंसे थे, कि किधर जाएं. समय नहीं था फिर भी हमने 72 सीढ़ियां उतरकर सप्तपर्णी गुफा के दर्शन का निर्णय लिया. कुछ और लोग भी  साथ हो लिये . 2-3 गुफा तो छोटी थी जिसकी भीतरी दीवार स्पष्ट दिखाई दे रही थी. सभी . प्राकृतिक गुफाएं थी. वाणावर की  तरह मानव निर्मित गुफाएं  नहीं थी. इन गुफा-समूह में एक गुफा का मार्ग अंदर की ओर जा रहा था , बिहारी जी ने बताया की इसका विस्तार 10 मीटर है. कुछ दिन पहले प्रो० लक्ष्मीकांत जी के नेतृत्व  में शोधार्थियों का एक दल यहाँ आया था, जिसमे बिहारी जी भी थे. इस गुफा के संदर्भ में लोगों में तरह-तरह की भ्रांतियां हैं कि यह एक सुरंग है जिसका दूसरा किराना राजगीर के पार निकलता है. गुफा के प्लेटफार्म के उत्तर की ओर सपाट ढाल है, उसके आगे कोई रास्ता नहीं है पहाड़ों का यही लैंडस्केप राजगीर के  राजधानी बनने का कारण है. जिसने इसे एक प्राकृतिक रक्षा प्राचीर प्रदान किया. इन पहाड़ों की विशेषता यह है कि एक ओर से तो इसपर आसानी से चढ़ा जा सकता है परंतु दूसरी ओर से खड़ी चढ़ाई होने के कारण दुर्गम है.


              
                               गुफा के पास एक साधु बैठे थे, जिज्ञासा बस मैंने उनका स्थान पूछा तो उन्होंने बताया मोराबादी. फिर किसी ने नाम पूछा तो बताया एजाज अहमद. मेरी जिज्ञासा बढ़ गई उनकी आयु लगभग 44-45 की रही होगी. दुबला पतला शरीर . कई लोग इनसे प्रश्न पूछने लगे और वे शांत भाव से प्रश्नों का उत्तर देते रहे. उन्होंने बताया की सन 1985 में एम०आई०टी०  मुजफ्फरपुर से इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करने के उपरांत मुंबई, बहरीन और कई स्थानों पर नौकरी किया. परंतु शांति नहीं मिली इन्होंने विवाह भी नहीं किया अर्थात जन्म से ही साधु प्रवृति के थे. जब इनसे मैंने पूछा कि अध्यात्म की ओर झुकाव का क्या कारण है, तो उन्होंने बताया "मुक्ति" मनुष्य मुक्त नहीं हो पा रहा है. मृत्यु के बाद भी नहीं. मैंने पूछा कि इस्लाम में भी कुछ आध्यात्मिक मार्ग अवश्य बताए गए होंगे. इस पर उन्होंने कहा कि नहीं इसमें सिद्धि और मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है. धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि नहीं अभी धर्म परिवर्तन नहीं किया है. इस वेश में रांची मोराबादी जाते हैं तो लोग उन्हें मारने दौड़ते हैं .एक बार मस्जिद के पास उन पर जबरदस्त हमला हुआ उसके बाद वरछानुमा  साधु -अस्त्र अपने पास रखने लगे, जो अभी भी उनके बगल में पढ़ा था .उन्होंने हम लोग का भी परिचय जानना चाहा चंद्रोदय जी ने बताया कि वह हरनौत से हैं . तभी सहसा उनकी नजरें चंद्रोदय जी पर स्थिर हो गई. बताया कि हिमालय की ओर से जब वे पैदल लौट रहे थे तो हरनौत में "नसकटवा" कह कर उन पर जानलेवा हमला हुआ, सिर पर एक व्यक्ति भारी पत्थर फेंकने ही वाला था की किसी ने रोककर उन्हें बचा लिया. वणावर, हरिद्वार , केदारनाथ एवं हिमालय क्षेत्र में उन्होंने साधना की है. बताया कि वहां के साधुओं ने मुस्लिम जानकर भी उनसे भेदभाव या घृणा नहीं किया.
                    चंद्रोदय जी ने उन्हें हरनौत में एक मंदिर में स्थान ग्रहण करने का अनुरोध किया और कहा कि यदि वे अपनी सहमति दें तो वह कल गाड़ी लेकर आते हैं परंतु उन्होंने इंकार कर दिया. वे यदि साधना-ध्यान में लीन न हों तो 7:00 बजे शाम में पहाड़ से नीचे उतरते हैं और वापस चले आते हैं. उन्होंने बताया कि कई लोगों को रात्रि में गुफा के अंदर जाते देखा है . जिसमें कुछ विदेशी यात्री भी होते हैं. कुछ लोग को तो जाते देखा पर लौटते नहीं देखा उन्होंने बताया कि एक बार बिना भोजन के 4 दिन ध्यान मग्न रहे इसी दौरान उनका झोला चोरी हो गया इसमें पासपोर्ट के साथ और के जरूरी सामान थे .

रविवार, 26 अप्रैल 2020

राजगीर डायरी-5

(गतांक से आगे .....)

वापसी मार्ग में कुछ दूरी चलने के बाद पगडंडी के उत्तर और कुछ प्राचीन ईट और दीवाल के अवशेष मिले. यहां आसपास का क्षेत्र चौरस था ,पर झाड़ियों से ढका था. मुझे यह स्थान  पुरातात्विक महत्व का दिखा. यहां बिखरे ईंट  के एक टुकड़े का आकार 7 इंच चौड़ा 12 से 14 इंच लंबा और 2 से  ढाई इंच मोटा था. इतनी ऊंचाई पर एक प्राचीन संरचना के अवशेष मुझे रोमांचित कर गया. मैंने आशुतोष जी को दिखलाया और इसके बुद्ध विहार होने की संभावना को भी बताया . अब यह शोध का विषय हो गया की प्रथम बौद्ध संगीति जो मगध सम्राट अजातशत्रु के संरक्षण में हुआ था के पूर्व या बाद में इस तरह की स्थाई संरचना / बौद्ध विहार का निर्माण कराया गया था . संरचना निश्चित रूप से बौद्ध भिक्षुओं के आवासन के लिए ही बनाया गया था जो इस पर्वत की धार्मिक पवित्रता के कारण संभव  है.  यह संरचना वर्तमान जल संचयन क्षेत्र बेलवा डोब से आधा / 1 किलोमीटर की दूरी पर है .भिक्षुओं के वर्षावास के लिए इस तरह की संरचना राजकीय संरक्षण में बनवाए जाने की संभावना से भी  इंकार नहीं किया जा सकता है.
                                                                                                                          (क्रमशः ...........)

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

राजगीर डायरी - 4 (उपन्यास "डूकारेल की पूर्णिया" का लोकार्पण)

 गतांक से आगे ..
कवि सम्मेलन के बाद इस कार्यक्रम में एक उपन्यास "डूकारेल की पूर्णिया" का लोकार्पण किया गया. यह उपन्यास प्रोफ़ेसर लक्ष्मीकांत द्वारा तीन वर्षों के गहन शोध के उपरांत लिखा गया है, गेरार्ड गुस्तावस डूकारेल  और उनके भारतीय समाज से जुड़े प्रसंग इस उपन्यास का विषय है.  


यह एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास है. संभवतः  नालंदा के किसी साहित्यकार द्वारा यह हिंदी में लिखा गया पहला उपन्यास है. उपन्यास के लोकार्पण के बाद मैंने गेरार्ड गुस्तावस डूकारेल उनके पूर्णिया से जुड़ाव और प्रोफेसर रामेश्वर प्रसाद के बारे में उपस्थित लोगों को बताया . 4:00 बजने को थे, आबो-हवा हमें लौटने की दस्तक दे रहा था. कार्यक्रम सभी को स्मृति चिन्ह देकर संपन्न किया गया .आयोजकों ने दोपहर के भोजन के लिए लिट्टी चोखा की व्यवस्था की थी जो पहाड़ पर ही बनाया गया था. इसमें राजगीर "ब्रह्मा कुंड" के गर्म जल का प्रयोग हुआ था  इतनी नरम और  स्वादिष्ट लिट्टी  पहले मैंने कभी नहीं खाई थी .अद्भुत आयोजन अभूतपूर्व भोजन के बाद, न जाने की इच्छा के बावजूद हम वहां से लौट चलें.
                                                                                                                            (क्रमशः ..........)

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

राजगीर डायरी 3

गतांक से आगे........                                                                                                                                                                 

हिंदी के कई नामचीन कवि अपना कविता-पाठ कर चुके थे, और कुछ कर रहे थे. फिल्मकार अमृत जी इस ऐतिहासिक आयोजन का  ड्रोन कैमरा से फिल्मांकन कर रहे हैं. नालंदा के साहित्यकारों ने ऐतिहासिक विरासतओं के संरक्षण के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से वर्ष 2016-17 में विरासत यात्रा प्रारंभ किया. जिसकी पहली कड़ी के रूप में बिहारशरीफ पहाड़ी पर "साहित्य बसंत उत्सव" की शुरुआत हुई. दूसरी कड़ी वनावर  पर्वत (जिला-जहानाबाद ) पर स्थित ऐतिहासिक गुफाओं के पास एक कवि-सम्मेलन  का आयोजन कर हुआ .



तीसरी कड़ी का आयोजन राजगीर के प्राचीन घेराबंदी की दीवार (cyclopean wall)  पर हुआ .यह आयोजन साहित्यकारों के विरासत यात्रा की  चौथी कड़ी  है.



इस आयोजन को आयोजकों ने "पहाड़ पर दहाड़" नाम दिया है यद्यपि इस नाम में साहित्य की सौम्यता  नहीं झलकती पर यह एक अच्छा आयोजन है . 
                                                                  (क्रमशः .........)