शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

टेंहटा डायरी / Tenhta Dayari

25 नबम्बर 2018 
ज्याँ द्रेज और अरुणंधती राय को सुनने की इच्छा लिये मेरे कदम ग्यान भवन (पटना)की ओर बढ. गये. 2.00 बजे अपराह्न हाल मे प्रवेश किया तो किसी अन्य वक्ता का भाषण चल रहा था. महिला सशक्तिकरण और समानता के सिद्धांत पर बात करते हुए वे बहक गये थे उपस्थित पुरुषों से पुछ रहे थे कि कितने लोग अपनी पत्नी के कपड़े धोते हैं. हाथ उठाने को कह रहे थे.
आगे की पंक्तियाँ भरी हुई थी, मैं पीछे की पंक्ति मे खाली कुर्सी तलाश रहा था, वक्ता सरदार वल्लभ भाई पटेल को दलित बता रहे थे. मेरे साथ हाल में उपस्थित कई लोग आश्चर्य में पड़ गये. बाद में पता चला कि ये दक्षिण भारत के दलित विमर्श के बड़े हस्ताक्षर हैं. इस आयोजन में बिहार के सरकारी कर्मचारी-पदाधिकारी के दलित संगठनों की अहम भूमिका है. इसके बाद अरुणधती राय का वक्तव्य प्रारंभ हुआ. उन्होंने मंच संचालक को पी॰ एच॰ डी॰ नही रहने के वाबजूद डाक्टर सम्बोधन के लिये धन्यवाद दिया.चीन और भारत की अर्थव्यवस्था के मौलिक अंतर का जिक्र करते हुए उन्होने कहा कि चीन में उत्पादक ही बिक्रेता है. श्रम बाजार को संचालित करता है, मार्गदर्शन देता है. परन्तु भारत में उत्पादक और बाजार के बीच एक व्यापारी वर्ग है, जिसमें परंपरागत रुप से एक खास जाति का वर्चस्व है. यही बाजार को संचालित करता है. विश्वविद्यालयों में दलित-विमर्श के साथ बनिया जाति और बाजार में उसके दबदबे पर भी शोध होना चाहिये. मुझे लगा कि हिन्दी से दूरी के कारण वे ऐसा बोल रही है, कई जातियों पर हिन्दी में शोध हुये है. दलित विमर्श या किसी अन्य विमर्श की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इस पर काम करने वाला या बोलने वाला कहीं न पक्षकार हो जाते हैं.
        ज्याँ द्रेज का वक्तव्य सबसे संतुलित और तर्कपूर्ण  था.  उनकी यह स्थापना कि भारत में बनने वाला कानून और इसे लागू करने वाली एजेंसी अंतीम पायदान पर बैठे लोगों के लिये नहीं है. इस संबंध में उन्होने मनरेगा कानून के लागू होने की विफलताओं का उल्लेख किया. काम माँगने का एक भी मामला पिछले दस सालों मे न्यायालय तक नहीं पहुँचा उल्टे मनरेगा के मुजफ्फरपुर के व्हिसील व्लोअर श्री सहनी ने लोगों को एकत्रित कर काम माँगा तो उन्हें कई अपराधिक मामलों मे अभियुक्त बना दिया गया.
  वक्तव्य के बाद आयोजकों ने सभी को स्मृति चिन्ह् एवं अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया . स्मृति चिन्ह् कुछ जाना पहचाना लगा, अरे ! यह तो राजीव की कलाकृति है. राजीव पुआल (agriculture waste )से नायाब चित्र बनाते हैं. ये जहानाबाद जिला के मखदुमपुर प्रखंड के टेंहटा गाँव के निवासी हैं. इनका  बनाया बानावर गुफा-द्वारा का चित्र जहानाबाद जिला का प्रतीक-चिन्ह् बन गया है.

                        जिस मंच पर घंटों देश के बड़े-बड़े विद्वानों ने श्रम की महता बताते हुये इसकी उपेक्षा पर तंज कसा , वहीं राजीव की इस श्रमसाध्य कला पर आयोजकों द्वारा एक शब्द भी नहीं कहना विरोधाभाषी लगा. इसके बारे में न बताये जाने के कारण अतिथि इन स्मृति-चिन्ह् के महत्व को कभी नहीं जान पायेगें.
     इस कार्यक्रम की दो विषेशतायें थी, आज अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर साधु-संतों का अखिल भारतीय सम्मेलन चल रहा था. दूसरा इससे सभी राजनीतिक दल के नेताओं को दूर रखा गया था.

1 टिप्पणी: