शनिवार, 6 जनवरी 2018

वनवासी डायरी

आज से ठीक सत्रह साल पहले मैंने रोजगार के लिए घर छोड़ा था मेरे हाथ में एक बैग और मन में मां के अश्रुपूरित नेत्र जिसमें बेटे को रोजगार मिल जाने की खुशी भी थी । भाई-बहन में सबसे छोटे होने के कारण मैं माता-पिता से कभी दूर नहीं रहा । पटना जहां मेरा जन्म हुआ पला-बढ़ा पढ़ा-लिखा पीछे छूट गया |
    इन सत्रह वर्षों में मैं पाँच दिन पटना रहने को तरस गया , इन सत्रह वर्षों में दस  बार मैंने एक जगह से घोंसले को उजाड़ कर दूसरे जगह नया घोंसला बनाया , पर कहीं स्थाई ठिकाना न बन सका । मेरी गली मोहल्ले के सभी चेहरे बदल गए अपने ही शहर में बेगाना हो गया। जो पटना छोड़ गया था वह कहीं गुम हो गया। मेरा संगदिल मालिक तब पसीजा जब मेरे पिता की मृत्यु हुई उसने मुझे श्राद्ध कर्म में भाग लेने के लिए पूरे पाँच दिन की छुट्टी दी।
आज मेरा सत्रह साल का बनवास समाप्त हुआ  मैं पटना लौट आया हूं ।  इन सत्रह सालों में मैंने अपने संगी-साथियों को खोया। पिता को खो दिया। लौटा हूं तो साथ में एक अदद पत्नी, तीन बच्चे ,एक ट्रक सामान, आंखों पर चश्मा, पॉकेट में दवाई और हाथ में मोबाइल है आप इसे मेरे सत्रह वर्षों के उपलब्धि कह सकते हैं ।
                      बिहार के कोने-कोने में कई अच्छे दोस्त बने । समाज के सबसे निचले पायदान के लोगों के साथ जहां गया जुड़ता गया । कुछ मिले जिन्हें मैं याद नहीं होऊंगा पर वे मुझे याद है । इस जुड़ाव ने मुझे अनुभव का नया संसार दिया । यदि घर नहीं छोड़ता तो शायद इससे वंचित रह जाता । यही मेरे गत सत्रह वर्षों की पूंजी है।
                                  (4 जनवरी2018)

5 टिप्‍पणियां:

  1. राजीव रंजन कुमार, कल्याण पदाधिकारी, राजगीर6 जनवरी 2018 को 6:08 pm बजे

    बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
    मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

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  2. Apki bate Dil me sama gayi ho sakta hai kuch yad rahne walo me Mai bhi hun aisa sochta Hun . Happy journey welcome home Sir

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  3. जीवन का सच।
    जीवन का सच्चा अनुभव।

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  4. Sir ji apki earn ki hui adbhut abhivyakti se matribhumi abhibhut ho gayai hogi....aisi adhikarik evam sansarik abhivyakti sabhya samaj ka prateek hai.....may god bless you sir ji.....maribhumi ki seva mae...I will be always with you.....

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