गुरुवार, 7 नवंबर 2019

किताब-ए-पटना (पटना से जुड़ी किताबों की महफिल-"पटना खोया हुआ शहर" )

"पटना खोया हुआ शहर" वरिष्ठ पत्रकार अरुण सिंह की रचना  है . हाल ही में (2019) यह पुस्तक वाणी प्रकाशन से छपकर आयी  है. प्रारंभिक समीक्षाओं मे यह लिखा गया है कि जिन्हे इतिहास पढना बोझिल लगता है, उनके लिये ये पटना पर अच्छी सामग्री है. परन्तु ऐसा कहना एक सतही बात होगी . पुस्तक के विषय सूची को  देखकर लगता है कि यह लेखक के कई वर्षों के परिश्रम और शोध का प्रतिफल है.


इसमे पटना से जुड़े वैसे ऐतिहासिक एवं रोचक तथ्य है जिससे गुजरना पटनावासियों को रोमांचित कर सकता है. घटनाओं एवं तथ्यों को ज्यादा विस्तार नहीं दिया गया है.  एक दो पन्नो से ज्यादा में एक अध्याय नहीं है. लेखक सोशल मिडीया के दौर मे यह समझ चुके है कि पाठक विस्तार में नही जाना चाहते उन्हें तो कौतूहल पैदा करने वाला संक्षिप्त सार चाहिये. शिर्षक भी इसी तरह के है, बानगी देखिये-
पटना की अफीम से अँग्रेज चाय खरीदते थे.
पटना के नबाबों जमीन बेच किये थे ऐश
जब अकबर पटना आया
पटना के चीजों की शोहरत दूर तक  थी
पुस्तक की लड़ियों को ऐतिहासिक तथ्यो के आधार पर पिरोने का प्रयास किया गया है. परन्तु अध्याय काल-क्रम के अनुसार नही रखे गये है. उदाहरण स्वरुप एक अध्याय का शिर्षक है, " आपातकाल और पटना काफी हाउस" उसके कुछ अध्याय बाद है "जब अकबर पटना आया". इस पुस्तक ने हिंदी मे एक बड़ी कमी को पुरा किया है.    

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