सोमवार, 1 जून 2015

पूर्णिया डायरी -2 (Purnea dayri- 2)

दक्षिण भारत का एक युवक रोजगार की तलाश में किसी कारवाँ के साथ भटकता हुआ उत्तर भारत के एक छोटे से शहर में सत्तर के दशक में आया.
   इंडो-चीन सीमा तनाव से उत्पन्न परिस्थितियों के करण यंहा सामरिक महत्व के बड़े संस्थान का निर्माण किया जा रहा . उसे वंहा निर्माणाधीन संस्स्थान के केंटिन में भोजन सामग्री आपूर्ति का काम मिला . आवश्यकता अनुसार सभी सामग्रियों को जुटाकर आपूर्ति करना इस सीमावर्ती शहर में कठिन काम था. सभी सामग्रियां तो मिल जाती पर माँग के अनुरूप केला इस शहर मे नहीं मिलता . दूर के दूसरे शहर से लाकर यंहा आपूर्ति करना घाटे का सौदा था.
  उस दक्षिण भारतीय युवक ने कुछ स्थानिय किसानों से बात कर उन्हें केले की खेती करने को प्रोत्साहित किया और उनसे पूरी उपज खरीद लेने का आश्वाशन भी दिया. एकाद किसान ने उसकी बात मान  ली .युवक ने उन्नत नस्ल के पौधे उपलब्ध कराने में भी उनकी मदद की. किसान को सौदा लाभ का लगने लगा . कई किसान देखा-देखी केले की फसल लगाने लगे.
संस्थन का निर्माण काम पूरा हो गया. अब उस दक्षिण भरतीय युवक के लिए वंहा कोई रोजगार नहीं रहा. इस दौरान उसके संबंध कई किसानों से हो गये , उनमे से कुछ पढ़े – लिखे थे. युवक ने उसी शहर में एक नर्सरी खोल ली. केले के उन्नत नस्ल के पौधे और आवश्यक सहयोग और प्रेरणा किसानों को देते रहे. केले कि खेती का इस क्षेत्र में व्यापक प्रसार हुआ. सदियों पुरानी खेती की पद्धति बदल गई . इसका श्रेय उस दक्षिण भरतीय युवक को ही जाता है.
स्वप्रेरणा से इस क्षेत्र में केले की खेती होते देख सरकार और कृषि शोध संस्थनों कि भी अभिरुचि इसमें जगी, उन्होंने भी आगे बढ़कर सहयोग किया. केले के उत्पादन केंद्र में विकसित होने के कारण व्यापारी सीधे किसानों को अग्रिम दे सौदा करने लगे. इस क्षेत्र में केले कि खेती का क्षेत्रफल उतरोतर बढ़ता गया.
 वह दक्षिण भरतीय युवक नर्सरी का संचालन करते हुए वृद्ध हो गये. वे इसी शहर में बस गये. सम्भवतः इस शहर का एकमात्र दक्षिण भरतीय परिवार. इनकी नर्सरी इतनी व्यवस्थित थी कि प्रदेश के राजभवन, मुख्यमंत्री-आवास और सचिवालय मे यंहा से पौधे मंगाए जाते थे.
कालान्तर में उस वृद्ध दक्षिण भारतीय कि मृत्यु हो गयी. अब उनके पुत्र और पुत्रवधु उस नर्सरी का  संचालन करते हैं.
जी हाँ यह एक पहेली जैसी कहानी है पर सच्ची है. उस दक्षिण भारतीय युवक का नाम तो मुझे अब याद नहीं है, पर वह उत्तर भरतीय शहर पूर्णिया है और वंहा स्थापित नर्सरी का नाम ग्रो मोर नर्सरी है. संस्थान जो वहाँ निर्माणाधीन था, वह चुनापूर वायुसेना का बेसकैम्प और हवाई-अड्डा था .

1 टिप्पणी:

  1. वाह रोचक जानकारी ! आज पूर्णिया एरिया केले की खेती के लिए विख्यात है।

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