गुरुवार, 2 जुलाई 2015

शिक्षक डायरी (teacher's dayri)

सुधांशु शेखर की टिपण्णी 

इन दिनों शिक्षकों के प्रति मेरी श्रद्धा बढ़ जाने के कारण घर में रोज़ घमासान होता है......!
कुछ साल पहले की बात है.....
सरकारी तंत्र द्वारा मुझे विद्यालय निरीक्षण करने भेजा गया ! 
विद्यालय पहुँचते हीं पाया कि दस में से आठ शिक्षक बिना अवकाश लिए ग़ायब थे । मैंने ग़ुस्से में उनके वेतन बंद करने का आदेश दिया ।
शिक्षक भी आख़िर शिक्षक होते है.......!
अपनी व्यथा को लेकर मेरे गाँव जाकर पिता से मिले....!
मेरे पूज्य पिता, जो सरकारी विद्यालय में गुरूजी थे, ने ग़ुस्से में दूरभाष पर कहा----
अरे मूर्ख ! तुमने गुरूजी का वेतन बंद कर दिया ? गुरू तो ब्रह्मा-विष्णु से भी बड़े होते है । मुझे अफ़सोस है कि मैंने तुझ जैसे नालायक को जन्म दिया !
इसके बाद गुरू के प्रति आई श्रद्धा के कारण मेरे जाँच रिपोर्ट पर कई बार मेरा वेतन बंद हो चुका है !
और पत्नी भी विद्रोह कर चुकी है...........!

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