सोमवार, 20 जुलाई 2015

जहानाबाद (काको) : डायरी (Jehanabad /Jahanabad : Kako - dayri)

अहमद शम्सी बिहार के पहले मुस्लिम आई० पी० एस० अफसर थे. शम्सी साहब ने १९३३ में आई० पी० एस० की परीक्षा पास की .  अपने मेहनत और लगन  के बल पर गवर्नर-जेनरल लार्ड  लिंग्लिथ्गो एवं लार्ड वैवल के मुख्य सुरक्षा अधिकारी के रूप में कार्य किया . १९४५ में शिमला कांफ्रेंस के अगले ही दिन उनकी तबियत बिगड़ी ; वंहा से दिल्ली लाया गया जंहा उनका इंतकाल हो गया.
                                         शम्सी साहब मूलतः काको के ही हैं. अलीगढ़ विश्वविद्यालय से पढ़े उनके एकलौते पुत्र काको में ही रहते हैं. इनकी आयु लगभग अस्सी वर्ष है. पुराने दिनों को याद कर भावुक हो उठते हैं. इनका जन्म वायसराय-आवास (वर्तमान राष्ट्रपति-भवन ) में हुआ था. उनसे मुलाकत हुई तो उन्होंने बताया . उन्होंने यह भी  बताया की शिमला में उनकी एक एक  बड़ा बंगला था जो बिक गया , शायद लाल कोठी नाम बताया था. इस हवेलीनुमा कोठी में कई मशहूर फिल्मों की शूटिंग भी हुई है.
लतीफ शम्सी अच्छे शायर है. अंजुम काकवी तखल्लुस से मुशायरों में प्रसिद्ध है. साठ के दशक में उन्होंने अलीगढ़ के मुशायरे में जब यह शेर पढ़ा -
ये तो मुमकिन है की तामीर न होने पाये ;
वरना हर जेहन में एक ताजमहल होता है .
तो जिगर मुरादाबादी ने उठकर उन्हें गले लगा लिया. आजकल काको पर केन्द्रित उर्दू में एक संस्मरणात्मक पुस्तक पर काम कर है, जिसकी पाण्डुलिपि उन्होंने मुझे दिखाई.

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