रविवार, 26 अप्रैल 2020

राजगीर डायरी-5

(गतांक से आगे .....)

वापसी मार्ग में कुछ दूरी चलने के बाद पगडंडी के उत्तर और कुछ प्राचीन ईट और दीवाल के अवशेष मिले. यहां आसपास का क्षेत्र चौरस था ,पर झाड़ियों से ढका था. मुझे यह स्थान  पुरातात्विक महत्व का दिखा. यहां बिखरे ईंट  के एक टुकड़े का आकार 7 इंच चौड़ा 12 से 14 इंच लंबा और 2 से  ढाई इंच मोटा था. इतनी ऊंचाई पर एक प्राचीन संरचना के अवशेष मुझे रोमांचित कर गया. मैंने आशुतोष जी को दिखलाया और इसके बुद्ध विहार होने की संभावना को भी बताया . अब यह शोध का विषय हो गया की प्रथम बौद्ध संगीति जो मगध सम्राट अजातशत्रु के संरक्षण में हुआ था के पूर्व या बाद में इस तरह की स्थाई संरचना / बौद्ध विहार का निर्माण कराया गया था . संरचना निश्चित रूप से बौद्ध भिक्षुओं के आवासन के लिए ही बनाया गया था जो इस पर्वत की धार्मिक पवित्रता के कारण संभव  है.  यह संरचना वर्तमान जल संचयन क्षेत्र बेलवा डोब से आधा / 1 किलोमीटर की दूरी पर है .भिक्षुओं के वर्षावास के लिए इस तरह की संरचना राजकीय संरक्षण में बनवाए जाने की संभावना से भी  इंकार नहीं किया जा सकता है.
                                                                                                                          (क्रमशः ...........)

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