शनिवार, 9 मई 2020

पटना कालेज डायरी-2

28 जनवरी 2020 

    'हिंदुस्तान' समाचार पत्र में इधर कुछ दिनों से संपादकीय के बाद वाले संपूर्ण पृष्ठ पर एक श्रृंखला प्रकाशित हो रही है, जो  रहता है. विषय है 'सन् 1990 में कश्मीर से पंडितों का पलायन'.
                 यह उन दिनों की बात है जब मैं पटना कॉलेज के मिंटो हॉस्टल में रहता था. स्कूल से सन् 1989 मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद, कुछ ही दिन पहले पटना कॉलेज में दाखिला लिया था .


   आजादी का जबरदस्त एहसास हो रहा था. स्कूल की तरह न तो सुबह कोई प्रार्थना होती थी और न ही घंटी दर घंटी शिक्षक बदलते थे, यहां तो सब कुछ अपनी मर्जी पर था शिक्षक न बदल कर क्लासरूम ही बदल जाता था  मन हो तो जाओ नहीं तो कॉलेज के मैदान या उसके किनारे मुड़ेर पर बैठकर गप्पे लड़ाओ आती-जाती लड़कियों को देखो या फिर लाइब्रेरी में जाकर क्लासिक उपन्यास का आनंद लो. कुछ ना हो तो राधा-कृष्ण घाट पर बैठकर आती-जाती लहरों को निहारो बीच-बीच में झुंड के झुंड डुबकी  लगती गंगा-डॉल्फिन को देखते हुए सोचो कि उस पार तो हाजीपुर है, तो   फिर दिखाई क्यों नहीं देता. 



हॉस्टल के पेपर-मैगजीन स्टैंड पर अन्य पत्र-पत्रिकाओं के साथ 'हिंदुस्तान' समाचार पत्र भी लगा रहता था. हमारे सीनियरस ने ताकीद की थी कि भविष्य में अच्छी नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होना है तो समाचार पत्र के संपादकीय, 'इंडिया टुडे' और 'फ्रंटलाइन'  जैसी पत्रिकाओं को पढ़ो, अंग्रेजी भी मजबूत होगी. इस मशवरा का हम शिद्दत से पालन करने लगे. 
 उन दिनों घटने वाले महत्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक राजनीतिक घटनाएं आज भी स्मृति पटल पर है. राजीव गांधी की हत्या, मंडल कमीशन आंदोलन, आडवाणी जी की रथ यात्रा और उसका रोका जाना, बाबरी मस्जिद प्रकरण, मुंबई के दंगे और उस पर बनी फिल्म मणिरत्नम की 'बंबई' फिर फिल्म पर विवाद और न जाने ऐसी कितनी ही घटनाएं.
       उन दिनों जब इतने बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों को अपना घर और अपनी जन्मभूमि छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया इस बाबत 'हिंदुस्तान' में कोई समाचार प्रमुखता से क्यों नहीं छापा. हमारी जैसी एक पीढ़ी को इन तमाम सूचनाओं से वंचित रखने का दोषी कौन है? विधु विनोद चोपड़ा को भी घटना के 30 साल बाद इस पर फिल्म बनाने की क्यों सूझी ? मणिरत्नम जैसा साहस वे उस समय क्यों नहीं जुटा पाए, मेरे मन के किसी दूर कोने में बैठा 'मार्क्स'  मुझे धकिया रहा है. 
 तय है कि 'हिंदुस्तान'  जैसे समाचार पत्र में आज भी कुछ समाचार नहीं छप रहे हो और 30 साल बाद उस पर एक श्रृंखला प्रकाशित हो, मुझे इंतजार रहेगा उस श्रृंखला का.
 उन दिनों हॉस्टल के मैदान में कॉरिडोर और बाथरूम के पास कोई न कोई बी.बी.सी हिंदी सेवा पर शाम 7:30 बजे समाचार सुनता मिल जाता था अब तो बी.बी.सी की हिंदी सेवा भी बंद हो गई है

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