बुधवार, 6 मई 2020

राजगीर डायरी-7

16 फरवरी 2020 
22 दिसंबर 2000 के कार्यक्रम में मैंने कालीम अजीज साहब की चर्चा करते हुए कहा था कि लगभग ढाई वर्ष मैं नालंदा जिला मे रहा इस दौरान किसी साहित्यिक संगठन या समाचार पत्र को उन्हें याद करते नहीं देखा . उसी दिन शंखनाद के अध्यक्ष प्रो० (डा०) लक्ष्मीकांत एवं सचिव राकेश बिहारी शर्मा जी ने यह निर्णय लिया था  कि 2020 का साहित्य बसंत उत्सव उन्हीं की याद में मनाया जाएगा . इस आयोजन के लिए आज की तारिख और स्थान 'विश्व  शांति स्तूप' राजगीर निर्धरित किया गया था.



आज मैं वही जा रहा हूँ. साथ में लाल बाबू, ऋतुराज जी और पर्यावरण प्रेमी  'तुलसी-पीपल-नीम' अभियान के संस्थापक अध्यक्ष डा० धर्मेन्द्र भी है. 12:30 बजे लगभग एक घंटे पर्वतारोहण के उपरांत 'विश्व  शांति स्तूप' के पास हमलोग पहुंच गये थे , जहां साहित्यकारों की पांचवी 'विरासत यात्रा' और वर्ष 2020 के 'साहित्य बसंत उत्सव' का आयोजन किया गया था.
          कलीम अजीज साहब पर चर्चा हुई, कई युवा रचनाकार जो उन से परिचित नहीं थे,  कुछ शेरों को सुनकर उनके कायल हो गए. कलीम अजीज साहब का जन्म सन 1926 में तेल्हारा में हुआ था .1946 के दंगों में उन्होंने अपनी मां और बहन को खोया था, जिसका गम उन्हें ता-उम्र रहा. यह दर्द उनकी रचनाओं में भी झलकता है.

वो जो शायरी का सबब हुआ, वो मुआमला भी अजब हुआ, 
मैं गजल सुनाऊं हूं इसलिए कि जमाना उसको भुला न दे.

 पटना कॉलेज से स्नातक की परीक्षा में गोल्ड मेडल हासिल कर आगे की पढ़ाई की और पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने . उनके शोध का विषय था "EVOLUTION OF URDU LITERATURE IN BIHAR".
 17 वर्ष की आयु से ही मुशायरों में शिरकत करने लगे थे . बड़ी शालीनता से वे कहते,
थी फरमाइश बुजुर्गों की तो लिख दी गजल ‘आजिज’
वरना शायरी का तजरिबा हमको भला क्या है



60' और 70' के दशक में अजीज साहब लाल किले में स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर होने वाले राष्ट्रीय मुशायरे में अकेले बिहार का प्रतिनिधित्व करते थे. पब्लिसिटी से हमेशा दूर रहे. इमरजेंसी के दौर में भी तत्कालीन प्रधानमंत्री के समक्ष प्रतिरोध की शायरी पढ़ी परंतु गजल के काव्यात्मक सौन्दर्य में कोई छेड़छाड़ नहीं किया

दिन एक सितम एक सितम रात करो हो

वो दोस्त हो, दुश्मन को भी जो मात करो हो

मेरे ही लहू पर गुजर औकात करो हो

मुझसे ही अमीरों की तरह बात करो हो

खंजर पे कोई छींट न दामन पे कोई दाग

तुम कत्ल करो हो कि करामात करो हो

एक और मंच से  जब उन्होंने यह शेर पढ़ा, तो सियासतदानों में खलबली मच गयी 
जुल्फों की तो फितरत है लेकिन मेरे प्यारे,
जुल्फों से जियादा तुम्हीं बलखाए चले हो.


कुछ अशरार देश काल की सीमा को लांघ कर सार्वदेशिक और सर्वकालिक हो गए .

 हकीकतों का जलाल देंगे सदाकतों का जमाल देंगे,
 तुझे भी हम गमे जमाना गजल के सांचे में ढाल देंगे.

वर्ष 1989 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया था. 14 फरवरी 2015 को उनका इंतकाल हुआ. उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी अंतिम यात्रा में बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री के साथ करीब 20,000 लोग शामिल हुए थे.
      गत वर्ष एक पूर्व मंत्री की मृत्यु पर बी० बी०सी० के मणिकांत ठाकुर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी . साथ में एक फोटो भी था जिसमे बिहार के बड़े नेता उनके फोटो पर पुष्पांजलि कर रहे थे. उन्होंने  नीचे यह शेर चस्पां किया था ,
खंजर पे कोई छींट न दामन पे कोई दाग
तुम कत्ल करो हो कि करामात करो हो 

मणिकांत ठाकुर के इस रिपोर्ट में पूर्व मंत्री, बड़े नेता और शायर तीनों का ताल्लुक नालंदा जिला से था. 



 
                                कलीम साहब पर चर्चा के बाद कई कवियों ने कविता पाठ किया . एक शांत और खुशनुमा माहौल में  साहित्य वसंतोत्सव और साहित्यकारों की पांचवी विरासत यात्रा  राजगीर के शांति स्तूप पर संपन्न हुई. कुछ लोगों को 'शंखनाद' द्वारा सम्मानित भी किया गया.

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