शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

गया डायरी-1( गयाशिर्ष स्तूप)

06 फरवरी 2023

रविवार का दिन पटना से बाहर की मेरी यात्राओं के लिए अनुकूल होता है. आज सुबह 7:00 बजे मैं अपने पुत्र प्रणय के साथ गया की ओर निकल पड़ा.


 


सुबह के कारण सड़क पर कम भीड़ थी परंतु पटना से महुली तक निर्माणाधीन फ्लाईओवर के कारण सड़क संकरी और धूल भरी थी इसे पार कर पुनपुन की ओर मुड़ा तो पुनपुन नदी के पुल से गुजरते हुए फिर निर्माणाधीन एनएच 82 पर चल पड़ा पुनपुन नदी के बाद सड़क संकरी हुआ करती थी जिसका अस्तित्व नहीं दिख रहा था नए सड़क ने इसे विलीन कर दिया था. इसके बाद लगातार हम निर्माणाधीन NH 82 और पुराने सड़क पर चढ़ते-उतरते 9:30 बजे गया शहर में प्रवेश कर गये . 

        हमें  गयासिस पर्वत (ब्राह्मयोनि) जाना थाआज माघ पूर्णिमा (6 फरवरी 2033) को यहां गयाशिर्ष स्तूप को प्राण-प्रतिष्ठित किया जाना था.वियतनाम की बौद्ध भिक्षुणी वेन बोधितचित्ता एवं दीपक आनंद जी ने बड़ी शिद्दत से मुझे आमंत्रित किया था. दोनों ही संत प्रवृत्ति के हैं. मुझसे पुरानी मित्रता है. स्तूप के निर्माण में इनकी अहम भूमिका है .


विगत 3 वर्षों से इसका निर्माण कार्य चल रहा था . भिक्षुणी बोधितचित्ता सही मायने में एक संत है, सन् 2019 से श्रीलंका के एक गुमनाम पहाड़ पर विपश्यना (तपस्या) मे थी. मैंने एक बार पूछा था तो उन्होंने बताया कि पहाड़ी के आसपास कुछ बौद्ध धर्मावलंबी श्रद्धावश उन्हें भोजन दान कर जाते हैं, जिससे उनकी जीविका चल पाती है. 

 450 फीट की ऊंचाई पर स्तूप का निर्माण करना  कठिन कार्य था पर यह पूरा हुआ. गया टावर चौक से आगे बढ़ने के बाद कई सड़कों में वन वे ट्रैफिक रहने के कारण मेरी गाड़ी को प्रवेश न करने दिया गया. तंग सड़कों से गुजरते हुए गूगल और स्थानीय पूछ-ताछ के बाद विष्णुपद मंदिर के पास पहुंचा. यहां का संकरा रास्ता और रविवार के भीषण भीड़ को झेलता हुआ मैं 10:45 बजे स्तूप के पास पहुंचा.


इस स्थान पर भगवान बुद्ध ने बोधगया से राजगीर जाने के क्रम में अग्नि पूजक जटिल भाइयों, गया और नदी  कश्यप को आदित्य पर्याय सूत्त का उपदेश दिया था. यहां घटित दूसरी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना यह है कि जब देवदत्त 500 बौद्ध भिक्षुको के साथ संघ से अलग हो गए थे तो इसी पर्वत पर आकर रुके थे, बिंबिसार ने उनके संघ के लिए भोजन की व्यवस्था की थी .

भगवान बुद्ध के निर्देश पर सारीपुत्र यहां आए थे और संगीतिपर्याय सूत्त का उपदेश दिया था. जिसके बाद संघ का एकीकरण हुआ. इस प्रकार यह स्तूप हमें याद दिलाता रहेगा कि भगवान बुद्ध के जीवन काल में ही संघ में दरार आनी प्रारंभ हो गई थी और इसे रोकने का सफल प्रयोग इसी स्थल पर किया गया था.

  आज सैकड़ों की संख्या में कई देश के बौद्ध भिक्षु भिक्षुणियों ने यहां प्रार्थना की और भगवान बुद्ध के इन सूत्रों का पाठ किया . आज भगवान बुद्ध यहां जीवंत हो उठे.


माता बोधितचित्ता और दीपक आनंद जी अत्यंत सहृदयता से मिले, मुझे और मेरे पुत्र को आशीर्वाद दिया . पुत्री राजतरंगिणी जिसके जन्म के बाद वे बिहार शरीफ अस्पताल में आई थी और अपना नाम उसे दे दिया था 'बोधितचित्ता' .उसका भी हालचाल पूछा कि" लिटिल 'बोधितचित्त' कैसी है" . कार्यक्रम संपन्न होने के बाद इन्होंने मुझे बोधगया चलने का अनुरोध किया परंतु मुझे शैवाल जी से मिलना था इसलिए दोनों से क्षमा मांग कर वहां से गया की ओर निकल गया.

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