पूर्णिया डायरी-18 से आगे ......
पूर्णिया 1887 ईस्वी
महामारी फैलने के आठ दिनों बाद पूर्णिया में मरने वालों की संख्या घटने लगी. पलायन कर गये लोग, वापस घरों को लौटने लगे, पर यंहा रह नहीं सके .सङ रही लाशों की बदबू इतनी भयानक थी कि इनके बीच एक भी रात बिताना शहादत देने जैसा था. एक सुबह शहर के बाहरी हिस्से में फेंके गये लाशों की गणना फोर्ब्स ने की थी जो सात सौ पचास से कम न थी. ये सभी लाशें सड़ कर शहर के वातावरण में भीषण बदबू फैला रही थी. शासन की इस उपेक्षा को छिपाते हुए फोर्ब्स ने आगे लिखा है कि , मामला इसी तरह नही चलता रहा लाशों के निस्तारण के सम्बंध में 'उपर' बेतार संवाद भेजकर निर्देश मांगे गये. पर उपर से एक ही उतर आता जितनी जल्दी हो लाशों को जला या दफना कर निस्तारित किया जाये. यह कहना तो आसान था , पर यहां स्थनीय प्रशासन के सामने यक्ष प्रश्न यह था कि, इतनी बड़ी संख्या में लाशों को जलाये या दफनायेगा कौन ? पूर्णिया के आसपास कई मील तक इस काम के लिये कोई तैयार न हुआ.
काफी मंथन के बाद डिप्टी कन्जरवेटर ऑफ फाॅरेस्ट ने यह प्रस्ताव दिया की सड़ती लाशों को निपटाने के लिये हाथियों की मदद ली जाये. हाथियों की मदद से लाशों को निपटाने की जो कार्य योजना बनी उसपर सभी ने सहमती दी. इस काम के लिये पच्चीस हाथियों को लगाने का निर्णय हुआ.
क्रमशः ........
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