मंगलवार, 12 मई 2015

नवादा डायरी (nawada dayri)

                                    

आज से तीन-चार साल पहले मै निगम भरद्वाज से नवादा मे मिला था. निगम जी बौद्ध धर्म-दर्शन-इतिहास और पाली भाषा के विद्वान् है. विज्ञान मे स्नातक निगम यायावर किस्म के आदमी है. वायु सेना कि नौकरी छोड़कर इतिहास में रूचि के कारण नव नालंदा महाविहार से एम्०ए० किया. मगध विश्वविद्यालय से पी०एच०डी० किया. शोध का विषय था " बौद्ध साहित्य में वर्णित वनस्पतियों का महत्त्व ". निगम नवादा के ही हैं .
     अब तक इनकी चार शोधपरक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं . दो हिंदी में दो अंग्रेजी में.
१.प्राचिन भारतीय शिक्षण व्यवस्था 
२.नालंदा का पुरातात्विक वैभव 
3.symbols and iconography of tantric budhism : an introduction
4.the ancient indian medical science with special reference to pali litarature
                                                इसके अतिरिक्त बीसियों सेमिनार में पेपर प्रेजेंट किया. पचिसियों आलेख. कल ही उनसे फिर लम्बे अरसे बाद मुलाकात हुई . कुछ महीनो.से वे प्राचिन लिपियों को समझने के लिए मनोहर पोथी जैसी वर्णमाला कि पुस्तक विकसित करने में लगे है. ब्राह्मी  लिपि कि मनोहर पोथी कि पाण्डुलिपि उन्होंने मुझे दिखाई. उनका दावा है कि कोई बच्चा भी इसे पढ़कर. अभिलेखों को सीधे पढ़ सकता है. पाण्डुलिपि देखकर मुझे उनका दावा सच लगा.
           उच्च शिक्षण व्यवस्था मे निगम जी को कोई स्थाई जगह नहीं मिल सका है.
मुझे कॉलेज के दिनों में हिंदी कि कक्षा में एक शिक्षक की कही यह बात याद आ गई कि" हम एक एसी  व्यवस्था मे जी रहे है, जंहा हरगोविंद खुराना को  लैब असिस्टेंट और मुक्तिबोध को शिक्षक कि नौकरी नहीं मिलती."   

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