बुधवार, 1 अगस्त 2018

किशनगंज डायरी-१(kishanganj dyari-1 devid cortni barr and linda barr)

6 नवंबर 2006 को एक अंग्रेज महिला किशनगंज के होटल हाईवे में आकर रुकी, आमतौर पर विदेशियों का आगमन इस शहर में ना के बराबर होता है. यहां  वैसा कोई पर्यटन स्थल या अन्य स्थान नहीं है ,जिसे देखने के लिए विदेशी  पर्यटक आएँ .लोगों ने अनुमान लगाया कि वह नेपाल या दार्जिलिंग जा रही होगी, रास्ते में किशनगंज रुक गयी . उसके साथ उसके मित्र मित्र रिचर्ड  अहर्निश भी थे .  दोनों भूटान भ्रमण कर किशनगंज पहुंचे थे .अगले दिन वह महानंदा किनारे चली गई, कुछ खोजी किस्म के पत्रकारों ने उनका पीछा किया . देखा कि वो एक पोटली से कुछ राख निकाल कर , ओम शांति ,ओम शांति ,ओम शांति का तीन बार जाप कर उसे महानंदा की धारा में प्रवाहित किया खबर फैल गई . तब तक और अखबार वाले जुट गए .अखबार वालों ने उनसे पूछा कि क्या वह हिंदू है ? और किसी की अस्थियां विसर्जित करने आई  हैं. कुछ देर मौन रहने के बाद उन्होंने कहा कि वह हिंदू नहीं क्रिश्चन है , पर हां वह अपने पिता की अस्थियां विसर्जित करने आई है .


पत्रकार आश्वस्त हो गया कि उनके पिता हिंदू थे.
" पूछा कि "पिता का क्या नाम था."
"मेरे पिता का नाम डेविड कोर्टनी बार्र था."
 पत्रकारों की जिज्ञासा शांत नहीं हुई , पूछा-
" क्या वे हिन्दू थे और आपकी मां से विवाह करने के उपरांत क्रिश्चियन हो गए थे."
 अंग्रेजी युवती जिसका नाम लिंडा बार्र  था ने ना में सिर हिलाते हुए खा-
" नहीं ऐसा नहीं है , मेरे पिता जन्मजात क्रिश्चन थे."
 पत्रकारगण फिर चकरा  गए.
उसके बाद लिंडा ने  जो कहा उसे सुनकर सभी आश्चर्य में पड़ गए कि क्या, ऐसा भी हो सकता है. लिंडा ने बताया कि ब्रिटिश राज के अंतिम कुछ वर्षों में, जब भारतीय राजनीति अपने उथल-पुथल के चरम दौर पर था तब उसके पिता डेविड  कोर्टनी  बार्र  पूर्णिया के कलेक्टर हुआ करते थे इससे पहले वे किशनगंज में एसडीओ के पद पर थे .वे  एक आई० सी० एस0 पदाधिकारी थे.

सन 1932 से 1947 तक  पटना ,रांची ,पूर्णिया, और हजारीबाग के जिलाधिकारी रहे थे. उनकी अंतिम इच्छा थी कि मृत्यु के उपरांत वैदिक रीति-रिवाज से उनका दाह संस्कार किया जाए. अस्थियों को उनके कर्म स्थल रहे किशनगंज के महानंदा नदी में प्रवाहित कर दिया जाए. 29 फरवरी 2004 को डेविड  कोर्टनी  बार्र की मृत्यु लंदन में हुई .उनकी इच्छा के अनुरूप  वैदिक  रीति-रिवाज से उनका दाह संस्कार किया गया. अस्थियों  को 2 वर्षों सुरक्षित रखने के उपरांत, आज उसे  महानंदा में प्रवाहित करने लायी  हैं .डेविड को हिंदुस्तान से बड़ा लगाव था. वे हिंदुस्तान की संस्कृति और रीति-रिवाज से इस कदर घुल-मिल  गए थे कि भारत को स्वतंत्रता मिलने और प्रशासनिक पद खो  देने के बावजूद भी उन्होंने कभी भारत छोड़ने की इच्छा प्रकट नहीं की. आई० सी ० एस ०  की नौकरी छोड़ने के बाद कलकत्ता की एक प्राइवेट मेटल बॉक्स कंपनी मे वे  मुख्य जनसंपर्क पदाधिकारी के रूप में कार्यरत  थे . वह यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी थे .मशहूर वन्य जीव विशेषज्ञ जिम कॉर्बेट इनके मित्र थे.
         सन 1962 तक भारत में रहे इसी दौरान ऊटी में लिंडा बार्र  का जन्म हुआ. जब उनकी पत्नी पॉलेनी को गंभीर बीमारी ( हैपेटाइटिस-बी ) हो गई तो मजबूरी में वे  लंदन लौट आये .पॉलिना की मृत्यु 1994 ईस्वी में हुई ,
                                              यह खबर अखबार में  छपी तो उन दिनों मैं पूर्णिया में ही था. किशनगंज के होटल हाईवे का फोन नंबर पता कर फोन किया ,तब तक लिंडा बार जा चुकी थी

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