गुरुवार, 30 अगस्त 2018

वाणावर डायरी-2(बराबर पहाड़ी की शैल उत्कीर्ण मूर्तियाँ/jehanabad/)

जहानाबाद से ३० किलोमीटर की दूरी पर वाणावर ( बराबर) की पहाड़ियां स्थित हैं. मैंने इस क्षेत्र की कई यात्रायें की है . वर्ष २०१४ में सिद्धनाथ मंदिर की यात्रा के क्रम में मंदिर से १५०-२०० मीटर की दूरी पर मुझे कुछ ऐतिहासिक/पुरातात्विक सामग्री होने का भान हुआ.मैं झड़ियों के अन्दर किसी तरह प्रवेश कर गया. अन्दर जाकर देखा तो सुखद आश्चर्य से अभिभूत हुआ .






अन्दर शैल-मूर्तियों की एक लम्बी श्रृंखला थी. मंदिर विकास समिति के सत्यप्रकाश जी से मिलकर वहां की साफ-सफाई करवायी .यह एक नई चीज थी जिसका उद्भेदन अबतक न हो सका था.















लौटकर मैंने इन शैल-मूर्तियों का विवरण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण / बिहार पुरातत्व की रिपोर्ट , जिला गजेटियर , डी० आर० पाटिल की पुस्तक Antiquarian remains in bihar में ढ़ूढ़ा पर कहीं नहीं मिला.
  
गौ-घाट/हथिया-बोर होकर  जानेवाला मार्ग मंदिर तक जाने का मार्ग प्राचीनतम  है .इस मार्ग से होकर जाने पर हमें कुछ  स्थानों पर  प्राचीन शैल मूर्तियाँ मिलती हैं .



इस प्रकार के शैल उत्कीर्ण मूर्तियाँ बिहार में केवल कौआडोल और सुलतानगंज (अजगैबीनाथ मंदिर) में देखने को मिलता हैं.
इस पोस्ट से पहले इन शैल उत्कीर्ण मूर्तियाँ का कहींं कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ है, न ही पूर्व में किसी शोधकर्ता ने इसके पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की है.













इनमें  महिषमर्दिनी, उमा-महेश्वर, बराह अवतार, गणेश,शिव की मूर्तियाँ बहुताय हैं. मंदिर के समीप वाले शैल उत्कीर्ण मूर्ति पैनल के सामने एक शिला में पांच फिट ऊँचाई पर दो ताखा है,
एक में शिवलिंग और दूसरे में दीपक रखने का स्थान है.









पत्थरों पर उकेरी गई ये मूर्तियां प्राचीन भारत की अद्भुत विरासत है जिसका अध्ययन और संरक्षण किया जाना है.

1 टिप्पणी: