शनिवार, 1 सितंबर 2018

वाणावर डायरी-३(बाराबर पहाड़ पर बिखरी मूर्तियाँ/jehanabad )

वाणावर बराबर पहाड़ के शिखर पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर की यात्रा के क्रम में कई मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं. कुछ पूर्ण है कुछ खंडित . परिक्रमा पथ, मंदिर परिसर , मंदिर के पिछे , रास्ते में कई मूर्तियां हैं. पुराने विश्राम गृह( जिसमें अब महंथ जी का डेरा है ) की बाहरी दिवारों पर भी कई मूर्तियां लगी  हैं
गणेश भगवान की यह मूर्ति मंदिर के पश्चिम ओर रखी है. मंदिर के अंदर मे भी कई मूर्ति यां हैं. लोग बताते हैं  कि 25-30 साल पहले इससे कहीं अधिक मूर्तियाँ थी . धीरे धीरे मूर्तियाँ गायब होते गयी आज कुल मिलाकर लगभग  पचास मूर्तियाँ  ही बच गयी हैं.
यह किसी खंडित बड़ी मूर्ति  का कमल आसन है ,जो पाताल गंगा की ओर बने संग्रहालय के मैदान में पड़ी है.
यह अर्धनिर्मित मूर्ती भी संग्रहालय के आहाते में पड़ी है.
अब यदि गौ घाट/हथिया बोर की और से चढ़े तो शैल उत्कीर्ण मूर्तियों की पट्टिका से आगे एक गणेश की मूर्ति पड़ी है.
पिछले वर्ष किसी भक्त ने वंही एक चट्टान पर छोटा मंदिर बनवाकर इसे स्थापित कर दिया है.
जिससे यह मूर्ति थोड़ी सुरक्षित हो गयी है. मंदिर बनने से एक ब्राह्मण को यहाँ रोजगार भी मिल गया है. इनके अतिरिक्त कोई मूर्ति मुझे चढाई के दौरान नहीं दिखी. मंदिर से लगभग १५० मीटर पहले एक खंडित नंदी सवार शिव की मूर्ति है.
इस मूर्ति के दोनों ओर छोटे-छोटे अभिलेख अंकित है. इसकी ऊँचाई लगभग  १.५ फीट होगी.
 (दाहिने और अंकित अभिलेख )
( बांयी ओर अंकित अभिलेख )
यह मूर्ति भी सावन अनंत चतुर्दशी एवं अन्य पूजा के अवसरों पर एक ब्राह्मण को जीविका उपलब्ध करता है.
यही कारण है कि यह मूर्ति अबतक सुरक्षित है. अन्य दिनों में पुजारी मूर्ति को वंही पास चट्टान के पीछे छुपा देते है. वहां से आगे बढ़ने पर मंदिर की सीढियाँ शुरू होने के पहले वराह की अद्भुत मूर्ति है.इसकी ऊँचाई लगभग चार फीट है.
यह बिहार की दुर्लभ मूर्तियों में से एक है.यह दस अवतार में से एक वराह अवतार की पूजा मगध क्षेत्र में प्रचलित होने का भी पुख्ता प्रमाण है. नवादा के अपसढ़ गांव में वाराह की विश्व-प्रसिद्ध मूर्ति है. बराबर से थोड़ी दूरी पर धराउत में भी एक प्राचीन वाराह मंदिर है . वाराह की मूर्ति के पास ही उमा-महेश्वर की एक मूर्ति है.
इस मूर्ति के पास कुछ खंडित लघु मूर्तियाँ भी है .

यहाँ से लगभग दस सीढ़ी ऊपर उमा-महेश्वर की तीन-चार मूर्तियाँ है, जिसे स्थानीय पुजारियों ने 
माँ दुखहरनी नाम दे रखा है. मंदिर के प्रवेश-द्वार के ठीक सामने एक प्राचीन विश्रामालय है जो पत्थरों से बना है.इसके उतरी एवं पश्चिमी दीवार पर कई मूर्तियाँ लगी है.
उतराभिमुख दीवार पर चौदह  मूर्तियाँ थी जिसमें से एक के गायब होने का प्रमाण वहां दीखता है.शेष तेरह मूर्तियाँ हैं.












इसमे अधिकांश मूर्तियाँ उमा-महेश्वर की है. ये मूर्तियाँ गुप्त काल से पाल काल के बीच की प्रतीत होती हैं. पश्चिमाभिमुख दीवार पर तीन मूर्तियाँ है. इनके बीच में प्रवेश द्वार है.


इसमें विष्णु और उमा-महेश्वर की मूर्ति है.इस पोस्ट से पहले इन बिखरी मूर्तियों  का कहींं कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ है, न ही पूर्व में किसी शोधकर्ता ने इसके पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की है.
इसके उतर तीन फीट ऊँची विष्णु की प्रतिमा है. विश्रामालय के पूरब

कुछ खण्डित मूर्तियाँ और शिवलिंग पड़े हैं.
 मंदिर के पश्चिम गणेश की मूर्ति के बगल में ४.५ फ़ीट ऊँची पार्वती की मूर्ति है. यह भी एक खण्डित प्रतिमा है.
इसके मूर्ति के निचले भाग पर नीचे भी कुछ अभिलेख अंकित है.

 इसके अतिरिक्त भी कुछ प्रतिमाएं 




भी यहाँ पर हैं,जिनमें  अधिकांश उमा महेश्वर की हैं . इसी ओर पहले के महंथों की समाधि है.
             मंदिर के उतरी परिक्रमा पथ पर दो मूर्तियाँ हैं 
एक मूर्ति उमा-महेश्वर और एक मूर्ति गणेश की है. यहाँ की सभी मूर्तियाँ काले बैसाल्ट पत्थर की बनी हैं. इतनी बड़ी संख्या में मूर्तियों का पाया जाना इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन कल में यंहा भव्य मंदिर था.

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