शनिवार, 22 सितंबर 2018

चंडी-मौ डायरी/Chandi-Mau Dairy (जंहा तुफैल खां सूरी की पूजा मन्दिर में होती है )

यह सहज विश्वास नहीं होता कि किसी गाँव में एक ऐसे मुसलमान व्यक्ति की पूजा उसके नाम का प्रतीक पत्थर रखकर मन्दिर में की जाती हो, जो अभी जीवित हैं. परन्तु यह सत्य है. इसी की पड़ताल के लिये मै, लालबाबू सिंह और राकेश बिहारी शर्मा नालंदा के चंडी-मौ गाँव गये. गाँव के मन्दिर के दरवाजे पर अन्य कई मूर्तियों के  साथ एक पत्थर भी सूरी बाबा के नाम से पूजा जाता है. ये सूरी बाबा तुफैल खाँ सूरी हैं. जिन्होंने कभी इस गाँव में देश का पहला ग्रामीण संग्रहालय बनाने का सपना देखा था.



तुफैल खाँ सूरी से मेरी मुलाकात २०१५ मे हुई थी, जब मैं ढूँढते हुये उनके घर गया था. अनुराग सिनेमा के पास उन्होंने अपना किराये का घर बताया था. बनौलिया चौक पहुँच कर आधा घंटा अनुराग सिनेमा हाल को ढूँढता रहा पर मुझे नहीं मिला, हारकर मैंने उन्हें फोन किया . वे पाँच मिनट में आ गये . मेरी जिज्ञासा शांत नहीं हुई, मैंने पूछा कि अनुराग सिनेमा हाल किधर है ? सड़क के दाहिनी ओर इशारा कर बताया कि यहीं तो था. पर अब वह नहीं है. सिनेमा हाल ध्वस्त हो गया है और इसकी  जमीन कई खंडों में बँट, बिक चुकी है. सिनेमा हाल की जगह कई मकान खड़े हो गये है फिर भी यह मुहल्ला अनुराग सिनेमा हाल के नाम से ही जाना जाता है. सूरी साहब के बारे में मुझे पर्यटन डिप्लोमा के भूतपूर्व विद्यार्थी सुधीर जी ने बताया था. अध्ययन के दौरान सुधीर ने सुरी साहब की मदद से छोटी पहाड़ी स्थित बया खाँ के मकबरे पर एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार किया था. इस मौलिक काम के चलते सुधीर को काफी प्रशंसा मिली.  सुधीर से सूरी साहब के इतिहास में दिलचस्पी के किस्से सुन उनको ढूढते हुये मैं उनसे मिलने चला गया.

               इतिहास की कोई औपचारिक शिक्षा नही रहने के बावजूद उन्हें बिहार शरीफ और आस-पास के ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बड़ी अच्छी जानकारी है. इतिहास से लगाव का एक कारण शायद यह है कि वे शेरशाह सूरी के वंशज हैं. आज से करीब 20 साल पहले उन्होने एक सपना देखा था, चंडी-मौ में भारत का पहला ग्रामीण संग्रहालय बनाने का.
इस सपना को पूरा करने के लिये अपनी कुल जमा पूँजी गँवा चुके हैं. इस हेतु यहाँ एक भवन तैयार कर चुके थे. इसे तैयार करने के लिये वे बिहार शरीफ से चंडी-मौ 32 कि०मी० साईकिल से रोज जाते थे. निर्माण के लिये काम करते. कभी-कभी 12 कि०मी० दूर नालंदा से साईकिल पर सिमेंट की बोरी लादकर ले जाते. आगे कि योजना थी कि आस-पास की सभी प्राचीन मूर्तियों को इस संग्रहालय मे रखा जाये. उनके पास ये सूची थी की मूर्तियाँ किस-किस घरों में पड़ी है, प्राय: सभी लोग संग्रहालय के लिए मूर्तियाँ देने को तैयार थे. पर गाँव की सरकारी जमीन पर नजर गड़ाये भू-माफिया ने षडयंत्र कर सूरी साहब को गाँव से निकाल दिया.




संग्रहालय तो नहीं बन सका पर उस भवन मे रखी मूर्तियां मंदिर का रूप ले चुकी हैं. मंदिर के दरवाजे पर कई अन्य मूर्तियों के साथ एक पत्थर की पूजा सूरी बाबा के रूप में भी लोग करते है.

               जब तक मै बिहार शरीफ मे था तो अक्सर विधि-व्यवस्था के नाम पर बनौलिया चौक पर बैठा दिया जाता था. मैं सूरी साहब को बुला लेता और बिहार शरीफ के इतिहास को टुकड़ों मे सुनता. इतिहास प्रेम के कारण उन पर कई फतवे जारी हो चुके हैं . 

3 टिप्‍पणियां:

  1. Ye galat baat hai.aisa koi baat nahi hai.20 saal phale humare gramin aise baat nahi bolte hai.

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  2. ये बातें सूरी साहब ने स्वयं एक साक्षात्कार में कहा है. इसका सत्यापन कई अन्य प्रमाणिक स्त्रोतों से किया गया है. आपने यह नहीं बताया कि आलेख में क्या गलत . इतिहास में सत्य दफन नही होता. इसे जितना भी नकारेगें वह परिष्कृत रूप में सामने आएगा.

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