शनिवार, 29 सितंबर 2018

सिकलीगढ़ डायरी(Sikligarh / grave of Augustus Gwatkin Williams)

 सिकलीगढ पूर्णिया से 12-13 किलोमीटर की दूरी पर बनमनखी प्रखंड में स्थित है . वर्ष 2004 से 2006 तक मैंने इस टीले का सर्वेक्षण कर शोध कार्य किया था.
शोधोपरांत प्रकाशित आलेख के आधार पर इसके ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को देखते हुए, खुदाई का प्रस्ताव वर्ष 2011 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को भेजा गया था,पर स्वीकृति नहीं मिली. सिकलीगढ का औदात्य मुझे बार-बार अपनी ओर खींचता , जब भी अवसर मिलता मैं वहां निकल पड़ता .
     पूर्णिया की यह विडंबना है कि न तो कनिंघम ने, और न ही उसके बाद किसी अन्य पुरातत्ववेत्ता या संस्थान ने इस क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया. इस शोध के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा की हिमालय के दक्षिण गंगा के उत्तर कोसी के पूरब और महानंदा के पश्चिम क्षेत्र मिलाकर जो चतुर्भुज बनता है उसका पुरातात्विक सर्वेक्षण नहीं हुआ है जिससे इस क्षेत्र की पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व को दुनिया के सामने नहीं लाया जा सका है. एक कारण  सतत बाढ़ भी है, जो पुरातात्विक सामग्रियों को बाहर कर ले जाते रही है. इस क्षेत्र में प्राप्त पुरातात्विक सामग्रियों में सबसे महत्वपूर्ण पतराहा (धमदाहा अनुमंडल) से वर्ष 1913 में प्राप्त पंच-मार्क सिक्कों का भंडार है.
पंच-मार्क सिक्के छठी शताब्दी ईसा पूर्व प्रचलन में थे. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इन पंच-मार्क सिक्कों के भंडार पर मेमाॉयर सीरीज में एक पुस्तक का प्रकाशन किया है .
      बौद्ध ग्रंथों में वर्णित आंगुत्तराप की अवस्थिति पर से अब तक रहस्य का पर्दा नहीं उठा सका है .इसे अंग के उत्तर स्थित इस असर्वेक्षित चतुर्भुज में ढूंढने की जरूरत है. 
     सिकलीगढ़ टीले के समीप कभी विलियम्स के नील की फैक्ट्री हुआ करती थी. बड़े-बड़े हौज जिस पर निलहे मजदूर दिन-रात काम करते बहरहाल न फैक्ट्री रही, न निलहे मजदूर, न ही निलहा साहब विलियम्स रहा . हाँ रह गई तो टीले के एक हिस्से पर Augustus Gwatkin Williams की कब्र
. जिनकी मृत्यु 55 वर्ष की आयु में 4 अप्रैल 1927 को हुई थी.
उसके ऊपर संगमरमर एक सुंदर स्मृति-लेख (Epitaph) लगा है,जो उन दिनों कलकात्ता से बनकर आता था.

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