रविवार, 30 सितंबर 2018

मैनामठ डायरी(Kalisthan of Mainamath)

जहानाबाद जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर पूरब मैनामठ गांव स्थित है. राजस्व अभिलेख में मैनामठ गांव का नाम नहीं मिलता है, बल्कि महमदपुर अब्दाल दर्ज है .एक परंपरा के अनुसार यहां प्राचीन काल एवं पूर्व मध्यकाल तक बौद्ध मठ था जिसकी स्थापना मैना नामक बौद्ध भिक्षुणी ने की थी. बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद बौद्ध भिक्षुओं का पलायन यहां से हो गया. मध्यकाल में इसका नाम शासकों ने महमदपुर अब्दाल रखा जो ब्रिटिश काल तक चला राजस्व अभिलेख में भी महम्मदपुर अब्दाल ही दर्ज हुआ,
लेकिन लोगों की जुबान पर मैनामठ ही चढ़ा रहा. इस गांव के उत्तर  3/4 किलोमीटर की दूरी पर लगभग 10 एकड़ का एक प्राचीन तालाब था. जिसके दक्षिण-पश्चिम छोर पर श्मशान था. यह तालाब अब एक एकड़ में ही बच गया है शेष भाग पर सड़क और सरकारी योजनाओं का भवन निर्माण हो गया है. स्थानीय लोगों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 100 साल पहले इस तालाब की सफाई के दौरान कुछ प्राचीन मूर्तियां मिली जिसे एक चबूतरे पर स्थापित कर दिया गया इसके बाद यह जगह काली-स्थान के नाम से जाना जाने लगा.इनमें सबसे महत्वपूर्ण मूर्ति  मां काली की है .
यह कला के दृष्टिकोण से पाल काल में प्रचलित माँ कंकाली काली की मूर्ति है .बड़ा तालाब, तालाब के किनार शमशान एवं कंकाली-काली की मूर्ति इस बात को मानने का पर्याप्त कारण है कि प्राचीन काल में यह तंत्र साधना और पूजा का एक केंद्र था. माँ काली के अतिरिक्त




गणेश ,शिव, विष्णु ,की मूर्ति प्राप्त हुई है सभी ब्लैक बैसाल्ट पत्थर की बनी पाल कालीन मूर्ति कला का नायाब नमूना है. मां काली की मूर्ति तस्करों की नजर में है इसकी दो बार चोरी हुई पर दोनों बार मूर्ति मिल गई. इस पोस्ट के पहले काली-स्थान मैनामठ और यहां की मूर्तियों का कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ है, न ही पूर्व में किसी शोधकर्ता ने इसके पुरातात्विक महत्व पर प्रकाश डालने की कोशिश की है इन मूर्तियों का विस्तृत अध्ययन पाल  कालीन मूर्तिकला के कई नए आयामों को उद्घाटित कर सकता है.

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