सोमवार, 10 सितंबर 2018

वाणावर डायरी-५ (vanavar dayri-5 / shyamjee chauhan)

वाणावर सिद्धनाथ मन्दिर जानेवाले लगभग 2000 सोमवरिया हैं । सोमवरिया का तात्पर्य वैसे शिवभक्तसे है जो पूरे साल प्रत्येक सोमवार को जलाभिषेक करते हों. ऐसे ही एक भक्त पिछले दस-बारह वर्षों से मंदिर जाने के लिए सुगम मार्ग का निर्माण कर रहे है. प्रत्येक सोमवार को अन्य सोमवारिय की तरह मंदिर में जलाभिषेक के बाद घर नहीं लौटते बल्कि पहाड़ के दुर्गम मार्ग को सुगम बनाने में लग जाते है
. ये अपने साथ दोपहर का भोजन , एक लाठी और एक खंती लेकर आते है. दिन भर काम में लगे रहते है,शाम को घर  लौटते हैं.गत वर्षों में कई बार इनके द्वारा बनाये गए मार्ग का क्षय हुआ , फिर भी हार नहीं मानी  , अपनी एकांत साधना में लगे रहे. गौ-घाट वाले मार्ग पर किसी सोमवार को इन्हें अपने कार्य में तन्मय देखा जा सकता है. पुराने श्रद्धालु जो २५-३० वार्षों से यहाँ आ रहे है, पहले के दुर्गम मार्ग को याद कर उनका धन्यवाद ही नहीं देते बल्कि उनके कार्यों में सहयोग करते हैं.
                         इनका नाम श्री श्यामजी चौहान है. बेला प्रखंड के भलुआ गांवों के रहने वाले है. इनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ है , मजदूरी कर जीवन का गुजर-बसर करते है. इनकी आयु ६५ वर्ष के लगभग है. रास्ता बनाने के लिए वे पहले उपुक्त पत्थर की तलाश करते है.
उसे लाठी और खंती के सहारे लाते  है और सही जगह पर लगते है.वर्तमान में उनके द्वारा निर्मित मार्ग को देखकर आश्चर्य होता है कि बिना पत्थरों को तोड़-फोड़  किये , प्रकृति में बिना कोई छेड़-छाड़ किये कैसे मात्र एक व्यक्ति के दृढ निश्चय से यह संभव हो पाया . इन्हें लोग इंजिनीयर साहब कहकर भी संबोधित करते है.
                       इनके सराहनिय कार्यो को कभी मिडिया ने लोगों के सामने नहीं लाया , क्योंकि सकरात्म खोजी पत्रकारिता की परम्परा समाप्त सी हो गयी है. पहली बार श्यामजी चौहान के सम्बन्ध में मेरा एक आलेख सम्यक नामक पत्रिका में वर्ष २०१४ में प्रकाशित हुई . इसके बाद विभिन्न समाचार-पत्रों में इनसे सम्बंधित आलेख छपने लगे . परन्तु इससे बेखबर श्री चौहान अपने काम में लगे आज भी आपको मिल जायेंगे . 

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