मंगलवार, 18 सितंबर 2018

नरकटियागंज डायरी (narkatiaganj Dayari /shatrudhan jha/ )

विवेकानंद के जीवन और दर्शन को पढते हुये यह जाना कि अमेरिका से लौटने के बाद अपने भाषण में उन्होंने कहा था ,मूर्ख देवो भवः,लाचार देवो भवः, बिमार देवो भवः . इस घटना के सौ साल बाद इस बात ने नारकटियागंज के स्टेशन मास्टर के अंतःमन को इस कदर झखझोर दिया कि उन्होंने नौकरी छोड़ दी. नौकरी छोड़ने के बाद नरकटियागंज मे ही कुष्ठ आश्रम शुरू किया.
उसके बाद समाज के अंतीम पायदान पर रहने वाले मुशहर समुदाय के बच्चों के लिये एक आश्रम बनाया जहाँ अभी दो सौ बच्चे हैं. वर्ग एक से आठ तक को मान्यता मिल गयी है.इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. महात्मा गाँधी और विनोवा भावे के सिद्धांतों को आत्मसात करने वाले शत्रुध्न झा जी ने नौकरी छोड़ने के बाद मिले पैसों से जो घर बनवाया उसे मुशहर समाज कि लड़कियों के आश्रम का रूप दे दिया है. यहां उनकी पत्नी इसकी देख-रेख करती है.आज मेरे गाँधीवादी मित्र दीपक जी उनकी चर्चा सुन उनसे मिलने विश्व  मानव सेवा आश्रम नरकटियागंज गये.
मुझसे बात भी करवायी . जब मैंने उनसे ये पुछा की इन कार्यो की वजह से अपने परिवार और समाज में विरोध का सामना नहीं करना पड़ा ? उन्होंने बताया कि उनके एक रिश्तेदार जो ज्योतिषाचार्य हैं ने कहा कि ब्रहम्ण होकर कोढी को छूता है , सात पीढियों को नर्क मे ढकेल रहे हो , तब श्री झा ने जबाब दिया की वे स्वर्ग और नर्क को देखना चाहते हैं .

 श्री झा के पुत्र झारखंड में उच्चाधिकारी हैं. उन्होने अपने विवाह के समय कहा कि जबतक कुष्ठ आश्रम के कुष्ठ रोगी बारात नहीं जायेगें तबतक विवाह नहीं होगा. फिर क्या था आश्रम के सभी कुष्ठ रोगियों को ले जाने की व्यवस्था की गयी. सभी बारातियों के साथ वे लोग खाना खाया साथ में सोये फिर लौटे. सामाजिक अव्यवस्था को खुली चुनौती काबिले तारीफ है. 

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