बुधवार, 5 सितंबर 2018

इवान पावलोविच मिनायेव की बिहार डायरी (Ivan Pavlovich Minayev's Bihar dayari)

रुसी भारतविद् इवान पावलोविच मिनायेव (१८४०-१८९०) ने रूसी ज्योग्राफिकल सोसाइटी के सदस्य के रूप में १९वि शताब्दी के उतरार्ध में भारत ,नेपाल और वर्मा की तीन यात्रायें की थी. बौद्ध धर्म और पाली में विशेष रूचि होने के कारण उन्होंने बिहार की भी यात्रा की थी.
इनका यात्रा वृतांत रुसी जर्नल में प्रकाशित हुआ. सन १९५८ एवं १९७० में अंग्रेजी में उनका यात्रा वृतांत प्रकाशित हुआ.
        इस यात्रा वृतांत का मगही अनुवाद भाषाविद् नारायण प्रसाद ने २०१८ में किया है. यह रचना उनके ब्लॉग http://magahisahitya.blogspot.com पर उपलब्ध है. "सिलोन और भारत के रुपरेखा "  पुस्तक रूसी  भाषा में प्रकाशित हुई  थी. इसके प्रथम खंड में बिहार की यात्रा का वर्णन है(पृष्ठ संख्या १८७से २३०).जिसका अनुवाद उन्होंने मगही में किया है.उनका दावा है कि इसका अंग्रेजी या अन्य किसी भारतीय भाषा में अनुवाद नहीं  हुआ है.बिहार में  इवान पावलोविच मिनायेव ने बिहारशरीफ , बड़गॉव, राजगृह, पावापुरी-गिरियक, बोधगया,गया और पटना की यात्रायें की थी. यदि इस यात्रा-वृतांत का अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ है तो नारायण प्रसाद जी ने भारतीय इतिहासकारों को एक नयी स्त्रोत सामग्री उपलब्ध करवायी है.
                   मिनायेव ने अपनी यात्रा के दौरान भारत ,नेपाल और बर्मा से कई प्राचीन ग्रथों की पांडुलिपियाँ अपने साथ संकलित कर ले गए . जो  वर्मी ,पाली , फारसी और अन्य भाषाओं की है. इसके अतिरिक्त कुछ अन्य सामग्रियां यथा मिनिएचर पेंटिंग भी ले गए.  अपने संग्रह को उन्होंने स्टेट पब्लिक लाइब्रेरी सेंट पिट्सवर्ग को दान कर  दिया, जंहा आज भी वह बंद बस्तों में पड़ी हैं. यहाँ ३०५ शीर्षकों के तहत इन्हे सूचिबद्ध किया गया है. बौद्ध धर्म के अतिरिक्त जैन एवं ब्राह्मण  धर्म से सम्बंधित पांडुलिपियाँ भी है. इस बिंदु पर हम  इवान पावलोविच मिनायेव को रूस का राहुल सांकृत्यायन कह सकते है. बिहारशरीफ के यात्रा वृतांत ब्राडले के सम्बन्ध में हमारी धारणा  को बदल सकता है, इसमें उल्लेख है की ब्राडले के प्राचीन कलाकृतियों की सूचि गायब थी. ब्राडले कुछ प्राचीन कलाकृतियों के गायब करने के इल्जाम के साथ फरार था .  यह Charles Allen जैसे ब्रिटिश  लेखकों को भी चुनौती देता है जो  इस सिद्धांत को प्रतिपादित करने के लिए कई पुस्तकों की रचना कर  चुके है कि  बौद्ध धर्म  और इतिहास के सम्बन्ध में जो भी खोजें  हुई उसे अंग्रेज विद्वानों  ने ही किया है.

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